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श्रुत स्थविरमुनिप्रणीत प्रथम उपाङ्ग
औपपातिकसूत्र
उपोद्घात औपपातिकसूत्र प्रथम उपांग है। (जैन परम्परा के बारह आधारभूत ग्रन्थों को अंग कहते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार इनमें से ग्यारह विद्यमान हैं और एक लुप्त हो गया है। अंगों के सहायक आगम उपांग कहे जाते हैं।) अंगों में जो स्थान आचारांगसूत्र का है, उपांगों में वही स्थान औपपातिकसूत्र का है। इसकी शैली वर्णन-प्रधान तथा भाषा उच्च साहित्यिक समास बहुल है। इसके दो विभाग हैं(१) समवसरण, तथा (२) उपपात। आचार्य अभयदेव सूरि ने 'उपपात' का अर्थ प्रकट करते हुए लिखा है-“इसमें देव-नरक गति में जन्म (उपपात) तथा सिद्धिगमन का वर्णन होने से इसका नाम औपपातिक है।'
इस आगम की सबसे बड़ी विशेषता है कि जिन विषयों का वर्णन हुआ है, वह पूर्ण विस्तार के साथ और बड़ी सुललित भाषा में हुआ है। एक से एक श्रेष्ठ और सुन्दर उपमाओं का भण्डार है। पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगता है कोई महाकाव्य पढ़ रहे हैं। इतना विस्तृत सुन्दर वर्णन अन्य किसी आगम में नहीं है, यही कारण है कि प्रज्ञापना तथा भगवती जैसे आगमों में भी 'जहा ओक्वाइए' कहकर प्रस्तुत सूत्र का वर्णन जानने की सूचना दी गई है। भगवान महावीर के शरीर का नख से शिख तक सम्पूर्ण अंगोपांगों का विविध उपमाओं द्वारा जितना लालित्यपूर्ण वर्णन यहाँ है, अन्यत्र कहीं नहीं है। __ इस सूत्र का आरम्भ अंग देश की राजधानी चम्पा नगरी के नगर-सौन्दर्य वर्णन तथा राजा कूणिक के बल-वैभव तथा उसकी धारिणी रानी का वर्णन करके फिर चम्पा में भगवान के पधारने के वर्णन के साथ होता है।
समवसरण अधिकार
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Samavasaran Adhikar
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