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________________ * एगत्तीभावकरणेणं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता, णमंसित्ता कूणियरायं पुरओकटु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिउडाओ पज्जुवासंति। ५५. तत्पश्चात् सुभद्रा आदि रानियों ने अन्तःपुर में स्नान किया, अन्य नित्य कार्य पूरे किये (जैसे-देह-सज्जा की दृष्टि से आँखों में काजल आँजा, ललाट पर तिलक लगाया, * दुःस्वप्नादि दोष निवारण हेतु चन्दन, कुंकुम, दधि, अक्षत आदि से मंगल-विधान किया)। सभी अलंकारों से विभूषित हुईं। * फिर बहुत-सी देश-विदेश की दासियों के साथ, जिनमें से बहुत-सी कुबड़ी थीं, बहुत* सी किरात देश की थीं, कुछ बौनी थीं, अनेक ऐसी थीं, जिनकी कमर झुकी थी, अनेक * बर्बर देश की, बकुश देश की, यूनान देश की, पह्लव देश की, इसिन देश की, चारुकिनिक * देश की, लासक देश की, लकुश देश की, सिंहल देश की, द्रविड़ देश की, अरब देश की, * पुलिन्द देश की, पक्कण देश की, बहल देश की, मुरुंड देश की, शबर देश की, पारस देश की-इस प्रकार विभिन्न देशों की, जो अपने-अपने देश की वेशभूषा में सजी थीं, अपनेॐ अपने देश के रीति-रिवाज के अनुरूप जिन्होंने वस्त्र आदि परिधान पहन रखे थे। जो इंगित अभिप्राय के अनुरूप चेष्टा को मन में गुप्त रहे वांछित भाव को संकेत या चेष्टा मात्र से समझने में चतुर थीं, ऐसी दासियों के समूह से घिरी हुई, वर्षधरों-नपुंसकों, कंचुकियों अन्तःपुर (जनानी ड्योढ़ी) के पहरेदारों तथा अन्तःपुर के विश्वस्त रक्षाधिकारियों से घिरी * हुई बाहर निकलीं। * अन्तःपुर से निकलकर वे सुभद्रा आदि रानियाँ, जहाँ प्रत्येक के लिए अलग-अलग * तैयार किये रथ खड़े थे, वहाँ आईं। वहाँ आकर अपने लिए निश्चित यात्रा के लिए * तैयार किये, जुते हुए रथों पर सवार हुईं। सवार होकर अपने परिजन वर्ग-दासियों आदि से घिरी हुई चम्पा नगरी के मार्ग बीच से निकलीं। निकलकर जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ आईं। * पूर्णभद्र चैत्य में आकर श्रमण भगवान महावीर के सन्मुख जहाँ से भगवान स्पष्ट * दिखाई देते थे, वहाँ आकर ठहरी। तीर्थंकरों के छत्र आदि अतिशयों को देखा। वहीं पर * अपने रथों को रुकवाया। रुकवाकर रथों से नीचे उतरीं। नीचे उतरकर अपनी बहुत-सी * कुब्जा आदि पूर्वोक्त दासियों से घिरी हुई बाहर निकलीं। जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आईं। * औपपातिकसूत्र *19 * (186) Aupapatik Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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