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________________ थे। हजारों नर-नारी उसका बार-बार अभिस्तवन- गुण-संकीर्तन कर रहे थे। हजारों नरनारी उसकी दैहिक कान्ति, उत्तम सौभाग्य आदि गुणों को लक्ष्य कर ये स्वामी हमें सदा प्राप्त रहें, बार-बार ऐसी अभिलाषा करते थे । हजारों स्त्री-पुरुष हाथों की अंजलि माला द्वारा राजा को प्रणाम कर रहे थे, तब राजा अपना दाहिना हाथ ऊँचा उठाकर बार-बार उनका अभिवादन स्वीकार करता हुआ. कोमल वाणी से उनका कुशल पूछता हुआ, घरों की हजारों पंक्तियों को पार करता हुआ कूणिक राजा चम्पा नगरी के बीच से निकला। निकलकर, जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ आया। पाँच अभिगम पूर्णभद्र चैत्य में आकर भगवान से यथोचित दूरी पर रुका। वहाँ से तीर्थंकरों के छत्र आदि अतिशयों को देखा । देखकर अपनी सवारी के प्रमुख उत्तम हाथी को ठहराया, हाथी से नीचे उतरा, (१) तलवार, (२) छत्र, (३) मुकट, ( ४ ) चंवर - इन राजचिह्नों को अलग किया, (५) जूते उतारे । भगवान महावीर जहाँ विराजमान थे, वहाँ आया । वहाँ आकर - (१) सचित्त पदार्थों का व्युत्सर्जन करना, (२) अचित्त पदार्थों को अव्युत्सर्जन - अपने पास रखना, (३) अखण्ड - अनसिले वस्त्र का उत्तरासंग - उत्तरीय की तरह कन्धे पर धारण करना, (४) धर्मनायक पर दृष्टि पड़ते ही हाथ जोड़ना, तथा (५) मन को एकाग्र करना - इन पाँचों अभिगमों-नियमों का अनुपालन करता हुआ राजा कूणिक भगवान के सम्मुख गया। भगवान को तीन बार आदक्षिण - प्रदक्षिणा वन्दना की, नमस्कार किया । वन्दना, नमस्कार कर कायिक, वाचिक, मानसिक रूप से पर्युपासना करने लगा। तीन प्रकार की पर्युपासना (१) कायिक पर्युपासना के रूप में हाथों-पैरों को सिकोड़े हुए, धर्म सुनने की इच्छा लिए, नमन करते हुए भगवान के सम्मुख होकर विनय से हाथ जोड़े हुए उचित स्थान पर बैठा । (२) वाचिक पर्युपासना के रूप में भगवान जो-जो बोलते थे, उसके लिए, 'भंते! यह ऐसा ही है, यही तथ्य है भगवन् ! यही सत्य है प्रभो ! यही सन्देह रहित है भंते ! आपका वचन हमारे लिए वांछित है भंते ! यही हमारे लिए प्रतीच्छित - स्वीकृत है प्रभो ! यही इच्छित-प्रतीच्छित है भंते ! जैसा आप कह रहे हैं वह वैसा ही है।" इस प्रकार अनुकूल वचन बोलता रहा। (३) मानसिक पर्युपासना के रूप में अपने हृदय में अत्यन्त संवेग - वैराग्य उत्पन्न करता हुआ तीव्र धर्मानुराग से अनुरक्त हुआ । समवसरण अधिकार Jain Education International (183) For Private & Personal Use Only Samavasaran Adhikar www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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