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________________ णाणामणि-कणगरयणविमल-महरिहणिउणोवियमिसिमिसंत-विरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठआविद्धवीरवलए किं बहुणा, कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए। ___णरवई सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, चउचामरवालवीइंयगे, मंगलजयसद्दकयालोए, मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेगगणनायग* दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह दूय-संधिवालसद्धिं संपरिबुडे धवलमहामेहणिग्गए इव गहगणदिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण * मज्झे ससिव्व पिउदंसणे णरवई; जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवगाच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरूढे। ४८. भंभसार के पुत्र राजा कूणिक सेनानायक के मुख से यह सब सुनकर प्रसन्न एवं * संतुष्ट हुआ। फिर जहाँ व्यायामशाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किये। अंगों को खींचना, उछलना-कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, मुद्गर आदि घुमाना इत्यादि क्रियाओं द्वारा अपने को श्रान्त, परिश्रान्त किया-थकाया, विशेष रूप से थकाया। फिर प्रीणनीय-रस, रक्त आदि की वृद्धि करने वाले, दर्पणीयबलवर्धक, मदनीय-कामोद्दीपक, बृंहणीय-माँसवर्धक, शरीर तथा सभी इन्द्रियों के लिए आह्लादजनक-आनन्दकर या लाभप्रद ऐसे शतपाक, सहस्रपाक वाले सुगन्धित तैलों एवं 9 अभ्यंगों-उबटनों आदि द्वारा शरीर का मर्दन करवाया। फिर तेल चर्म पर बैठा। (तेल से चिकना हुआ ऐसा आसन जिस पर बैठकर मालिश * करवाई जाती है) जिनके हाथों और पैरों के तलुए अत्यन्त सुकुमार तथा कोमल थे, जो * छेक, दक्ष-शीघ्र कार्य करने में समर्थ, प्राप्तार्थ-अपने व्यवसाय में सुशिक्षित, कुशल, मेधावी* मालिश-मर्दन करने की नई-पुरानी सभी विधियों के ज्ञाता, संवाहन-कला में मर्मज्ञ, * अभ्यंगन-तेल, उबटन आदि के मर्दन, परिमर्दन-तेल आदि को अंगों के भीतर तक पहुँचाने हेतु किये जाने वाले विशेष मर्दन, उबलन-उलटे रूप में नीचे से ऊपर या उलटे रोओं से किये जाते मर्दन से जो गुण-लाभ होते हैं, उनको करने में जो समर्थ थे, (उनसे) जो मालिश हड्डियों के लिए सुखप्रद हो, माँस के लिए सुखप्रद हो, चमड़ी के लिए सुखप्रद हो तथा * रोमों के लिए सुखप्रद हो-यों चार प्रकार से मालिश व देहचम्पी करवाई। ___इस प्रकार व्यायामजनित परिश्रम को दूर कर राजा व्यायामशाला से बाहर निकला। बाहर निकलकर, स्नान घर पर आया। स्नान घर में प्रविष्ट हुआ। उस स्नानघर में सब ओर मोतियों से बनी जालियाँ होने से वह बड़ा मनोरम लगता था। उसके आँगन में तरह-तरह * औपपातिकसूत्र (166) Aupapatik Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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