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________________ सुंदरथण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्णरूव-जोव्वणविलासकलियाओ सुरबहूओ सिरीसनवणीयमउयसुकुमालतुल्ल-फासाओ, ववगयकलिकलुसधोयनिद्वंतरयमलाओ, सोमाओ कंताओ पियदसणाओ जिणभत्तिदसणाणुरागेणं हरिसियाओ ओवइया यावि.... जिणसगासं....। * उस समय भगवान महावीर के समीप अनेक समूहों में अप्सराएँ (देवियाँ) उपस्थित हुईं। उनकी दैहिक कान्ति अग्नि में तपाये गये, जल से स्वच्छ किये गये स्वर्ण जैसी थी। वे बाल* भाव को पार कर-बचपन को लाँघकर यौवन में पदार्पण कर चुकी थीं-नवयौवना थीं। उनका रूप अनुपम, सुन्दर एवं सौम्य था। उनके स्तन, नितम्ब, मुख, हाथ, पैर तथा नेत्र लावण्य एवं यौवन से विलसित, उल्लसित थे। दूसरे शब्दों में उनके अंग-अंग में सौन्दर्य* छटा लहराती थी। वे रोग आदि से अबाधित, शृंगार रससिक्त तारुण्य से विभूषित थीं। उनका वह रूप, सौन्दर्य, यौवन, जरा-वृद्धावस्था से विमुक्त था। वे देवियाँ सुरम्य वेशभूषा, वस्त्र, आभरण आदि से सुसज्जित थीं। उनके ललाट पर पुष्प जैसी आकृति में निर्मित आभूषण, उनके गले में सरसों जैसे स्वर्ण-कणों तथा मणियों से बनी कंठियाँ, कण्ठसूत्र, कंठले, अठारह लड़ियों के हार, नौ लड़ियों के अर्द्धहार, अनेक • प्रकार की मणियों से बनी मालाएँ, चन्द्र, सूर्य आदि अनेक प्रकार की मोहरों की मालाएँ, कानों में रत्नों के कुण्डल, बालियाँ, बाहुओं में त्रुटिक-तोड़े, बाजुबन्द, कलाइयों में मानिक* जड़े कंकण, अंगुलियों में अंगूठियाँ, कमर में सोने की करधनियाँ, पैरों में सुन्दर नूपुर9 पैजनियाँ, घुघुरूयुक्त पायजेबें तथा सोने के कड़ले आदि बहुत प्रकार के गहने सुशोभित थे। वे पँचरंगे, बहुमूल्य, नासिका से निकलते निःश्वास मात्र से जो उड़ जायें-ऐसे अत्यन्त * हल्के, मनोहर, सुकोमल, स्वर्णमय तारों से मंडित किनारों वाले, स्फटिक-तुल्य आभायुक्त वस्त्र धारण किये हुए थीं। उन्होंने बर्फ, गोदुग्ध, मोतियों के हार एवं जल-कण सदृश स्वच्छ, उज्ज्वल, सुकुमार-मुलायम, रमणीय, सुन्दर बुने हुए रेशमी दुपट्टे ओढ़ रखे थे। वे सब * ऋतुओं में खिलने वाले सुरभित पुष्पों की उत्तम मालाएँ धारण किये हुए थीं। चन्दन, केसर आदि सुगन्धमय पदार्थों से निर्मित देहरंजन-अंगराग से उनके शरीर रंजित एवं सुवासित थे, श्रेष्ठ धूप द्वारा धूपित थे। उनके मुख चन्द्र जैसी कान्ति लिए हुए थे। उनकी दीप्ति बिजली की द्युति और सूरज के तेज सदृश थी। उनकी गति, हँसी, बोली, नयनों के हाव-भाव, पारस्परिक आलाप-संलाप इत्यादि सभी कार्य-कलाप नैपुण्य और लालित्ययुक्त थे। * औपपातिकसूत्र Aupapatik Sutra 90.90.90. 90.9xoxodoko (146) * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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