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________________ radiant. (This is followed by the description of their appearance and a adornments as in preceding aphorism) Joining palms in alle humility, they commenced his worship with a desire to listen to his en sermon. विवेचन-प्रस्तुत आगम में सूत्र ३३ से ३७ तक भगवान महावीर के समवसरण में दर्शन करने के लिए चार जाति के देवों के आगमन का प्रसंग है। इन देवताओं के सम्बन्ध में विशेष जानने योग्य तथ्यों - का सार इस प्रकार है१. असुरकुमार इन्हें भवनपति देव कहते हैं इनके दस प्रकार हैं-(१) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३) सुपर्णकुमार, (४) विद्युत्कुमार, (५) अग्निकुमार, (६) द्वीपकुमार, (७) उदधिकुमार, (८) दिक्कुमार, (९) पवनकुमार, (१०) स्तनितकुमार। निवास-तिर्यक् लोक के समभूतल से नीचे, अधोलोकवर्ती रत्नप्रभा पृथ्वी (प्रथम नरक भूमि जो एक लाख अस्सी हजार योजन मोटाई वाली है) एक हजार योजन अन्दर प्रवेश करने पर तथा नीचे से एक हजार योजन छोड़ने पर के ऊपर से एक लाख अठहत्तर हजार योजन के मध्य भाग में भवनवासी देवों के करोड़ों भवनावास हैं। ये भवन बाहर में वृत्ताकार, अन्दर से चतुष्कोण हैं। विशाल खुदी हुई खाई * तथा परिखा से युक्त है। ____ भवनवासी देवों का परिवार-हजारों सामानिक देव, त्रायस्त्रिंश देव, लोकपाल, सेना, सेनापति, हजारों आत्मरक्षक देव तथा अग्रमहिषियाँ आदि परिवार सहित ये अधोलोक के उक्त स्थान पर रहते हैं। सतत नृत्य देखना, वीणा, बाँसुरी आदि का मधुर संगीत सुनते रहना यह इनकी रुचि है। ये देव दक्षिण दिशा तथा उत्तर दिशाओं में रहते हैं। प्रत्येक दिशा में भवनपति देवों के एक-एक इन्द्र * अर्थात् दक्षिण दिशावर्ती दस भवनपतियों के दस तथा उत्तर दिशावर्ती दस भवनपतियों के दस इस प्रकार * कुल बीस इन्द्र हैं। भवनपति देवों का वर्ण व वस्त्र-असुरकुमारों का वर्ण कृष्ण, वस्त्र-लाल। नागकुमार व उदधिकुमारों का वर्ण-श्वेत-पीत (पंडुर), वस्त्र-सिलिंध्र वृक्ष के फूलों के समान, कुछ लाल, कुछ श्वेत आभा लिए। ___ सुवर्णकुमार, दिशाकुमार व स्तनितकुमारों का वर्ण-उज्ज्वल स्वर्ण रेखा के समान गौर वर्ण, वस्त्र* आसासग वृक्ष जैसा। विद्युत्कुमार, अग्निकुमार और द्वीपकुमार का वर्ण-तपे हुए सोने के समान ताम्र वर्ण, वस्त्र-नीले। वायुकुमार का वर्ण-प्रियंगु वृक्ष (पीपल) जैसा, वस्त्र-संध्याराग जैसा सिंदूरी। (पण्णवणा पद, २) (इनका विस्तृत वर्णन गणितानुयोग, अधोलोक वर्णन, पृष्ठ ७४ से १०८ तक देखें) Me औपपातिकसूत्र (140) Aupapatik Sutra For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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