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speeding Ketu and other planets, the twenty eight constellations, stars of various shapes and five colours and other heavenly bodies orbiting around in the space. These included both stationary and moving sources of light. Each one of them wore their specific insignias with their names on their crowns. They were handsome and very rich. (This is followed by the description of their appearance and adornments as in preceding aphorism) Joining palms in all humility, they commenced his worship with a desire to listen to his sermon.
वैमानिक देवों का आगमन
३७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वेमाणिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था - सोहम्मीसाण - सणकुमार - माहिंद - बंभ - लंतग-महासुक्क - सहस्साराणय- पायारण - अच्चुवई पहिट्ठा देवा जिणदंसणुस्सुया गमणजणियाहासा ।
पालग - पुप्फग - सोमणस्स - सिरिवच्छ - णंदियावत्त- कामगम - पीइगम - मणोगमविमल - सव्वओ भद्द - सरिसणामधेज्जेहिं विमाणेहिं ओइण्णा वंदगा जिणिंद, मिग- महिस - वराह - छगल - द्ददुर - हय - गयवइ - भुयग - खग्ग - उसक विडिमपागडियचिंधमउडा, पसिढिलवरमउडतिरीडधारी, कुंडल उज्जोवियाणणा,
मउडदित्तसिरया, रत्ताभा, पउमपम्हगोरा, सेया, सुभवण्णगंधफासा, उत्तमवेउब्विणो, विविहवत्थगंधमल्लधारी, महिड्डिया महज्जुतिया जाव पंजलिउडा पज्जुवासंति ।
३७. उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के समक्ष (१) सौधर्म, (२) ईशान, (३) सनत्कुमार, (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्म, (६) लान्तक, (७) महाशुक्र, (८) सहस्रार, (९) आनत, (१०) प्राणत, (११) आरण, तथा ( १२ ) अच्युत देवलोकों में रहने वाले वैमानिक देवों के अधिपति इन्द्र अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक उपस्थित हुए । जिनेश्वर देव के दर्शन पाने की उत्सुकता तथा अपने वहाँ पहुँचने से उत्पन्न हर्ष से वे आनन्दित थे।
(जिनेन्द्र प्रभु का वन्दन - स्तवन करने वाले वे बारह देवलोकों के दस अधिपति देव ) (१) पालक, (२) पुष्पक, (३) सौमनस, (४) श्रीवत्स, (५) नन्द्यावर्त, (६) कामगम, (७) प्रीतिगम, (८) मनोगम, (९) विमल, तथा (१०) सर्वतोभद्र नामक अपने-अपने विमानों से भूमि पर उतरे । इन देवेन्द्रों के मुकुटों में (१) मृग - हरिण, (२) महिष - भैंसा, (३) वराह - सूअर, (४) छगल-बकरा, (५) दुर्दुर - मेढ़क, (६) हय - घोड़ा, (७) गजपति
औपपातिकसूत्र
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Aupapatik Sutra
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