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________________ संयम पोत ३२. (ख) तरंति धिइधणिनिप्पकंपणे तुरियचवलं संवर-वेरग्ग-तुंगकूवयसुसंपउत्तेणं णाण-सिय-विमलमूसिएणं। सम्मत्त-विसुद्ध-णिज्जामएणं धीरा संजम-पोएण सीलकलिया पसत्थज्झाणतववाय-पणोल्लिय-पहाविएणं उज्जम-ववोयग्गहियणिज्जरण-जयणउवओगणाण-दसण-(चरित्त) विसुद्धवय (वर) भंडभरियसारा। जिणवरवयणोवदिट्ठमग्गेण अकुडिलेण सिद्धिमहापट्टणाभिमुहा समणवरसत्थवाहा सुसुइ-सुसंभास-सुपण्ह-सासा। गामे गामे एगरायं, णगरे णगरे पंचरायं दूइज्जंता, जिइंदिया, णिन्भया, गयभया सचित्ताचित्तमीसिएसु दव्वेसु विरागयं गया, संजया (विरता), मुत्ता, लहुया, णिरवकंखा साहू णिहुया चरंति धम्म। ३२. (ख) इस संसार-सागर को वे शीलसम्पन्न अनगार संयम रूप सुदृढ़ जहाज द्वारा शीघ्रतापूर्वक पार कर रहे थे। वह (संयम-पोत) धृति-धैर्य, सहिष्णुता रूप रज्जू से बँधा होने के कारण निष्प्रकम्प-सुस्थिर था। संवर तथा वैराग्य-रूप ऊँचे कूपक-ऊँचे मस्तूल से संयुक्त था। उस जहाज में ज्ञान रूप श्वेत, निर्मल वस्त्र का ऊँचा पाल तना हुआ था। विशुद्ध सम्यक्त्व उसका कर्णधार-खेवनहार है। वह संयम-पोत प्रशस्त ध्यान तथा तप रूप वायु से प्रेरित होता हुआ आगे-आगे बढ़ता रहता था, उस जहाज में उद्यम, व्यवसायमोक्षानुसारी प्रयत्न तथा निर्जरा, यतना, उपयोग, ज्ञान, दर्शन (चारित्र) तथा विशुद्ध महाव्रत रूप श्रेष्ठ माल भरा था। वीतराग प्रभु के वचनों द्वारा उपदिष्ट शुद्ध ऋजु मार्ग से वे श्रमण रूप उत्तम सार्थवाह सिद्धि रूप महापट्टन-बड़े बन्दरगाह की ओर बढ़े जा रहे थे। वे श्रमण सार्थवाह एक मात्र मोक्ष-प्राप्ति की आकांक्षा रखते हुए सम्यक् श्रुत, उत्तम भाषण तथा प्रश्न-प्रतिप्रश्न आदि द्वारा उत्तम शिक्षा प्रदान करते रहते थे। वे अनगार ग्रामों में एक-एक रात तथा नगरों में पाँच-पाँच रात प्रवास करते थे। वे जितेन्द्रिय-इन्द्रियों को वश में करने वाले हुए, निर्भय-मोहनीय आदि भयोत्पादक कर्मों का उदय रोकने वाले, गतभय-सब प्रकार के भयों से मुक्त थे। सचित्त-जीवसहित, अचित्त मिश्रित-सचित्त-अचित्त मिले हुए द्रव्यों में विरक्त रहने वाले थे। संयत-संयमयुक्त, विरत समवसरण अधिकार (127) Samavasaran Adhikar Jassagasakse answer Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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