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३०. (च) काय - क्लेश क्या है ?
काय - क्लेश अनेक प्रकार का है, जैसे- ( १ ) स्थानस्थितिक - एक ही तरह से खड़े या एक ही आसन से बैठे रहना (कायोत्सर्ग करना), (२) उत्कुटुकासनिक - उकडू आसन से बैठना [ इस आसन में दोनों चरणों के तलों को भूमि पर जमाया जाता है और बैठक (जंघाएँपुट्ठे) भूमि को स्पर्श भी करती हुई रहती हैं। साथ ही दोनों हाथों की अंजलि बाँधे रहना ], (३) प्रतिमास्थायी - मासिक आदि बारह प्रतिमाएँ धारण करना, (४) वीरासनिक- वीरासन में स्थित रहना (पृथ्वी पर पैर टिकाकर सिंहासन के समान बैठने की स्थिति में रहना, उदाहरणार्थ-जैसे कोई पुरुष सिंहासन पर बैठा हुआ हो, उसके नीचे से सिंहासन निकाल लेने पर वह वैसी ही स्थिति में स्थिर रहे, वह वीरासन है), (५) नैषधिक - पुढे टिकाकर या पलाथी लगाकर बैठना, (६) आतापक- सूर्य (धूप) आदि की आतापना लेना, (७) अप्रावृतक - देह को खुली रखना, (८) अकण्डूयक- खुजली चलने पर भी देह को नहीं खुजलाना, (९) अनिष्ठीवक - थूक आने पर भी नहीं थूकना, (१०) सर्वगात्र - परिकर्मविभूषा - विप्रमुक्त - देह के सभी संस्कार, सज्जा, विभूषा आदि से मुक्त रहना ।
यह काय-क्लेश तप का वर्णन है । (भगवान महावीर के श्रमण उक्त रूप में कायतप का अनुष्ठान करते थे ।)
-क्लेश
(5) KAYAKLESH TAP
30. (f) What is this Kayaklesh tap ?
Kayaklesh tap (mortification of body) is of many types(1) Sthanasthitik — To remain in a fixed posture, sitting or standing (perform kayotsarg). (2) Utkutukasanik-To sit in Utkutuk posture (to squat with feet flat on the ground and keep both palms joined). (3) Pratimasthayi-To observe any of the twelve ascetic-pratimas including the monthly one. ( 4 ) Virasanik — To sit in Vira posture (half squatting as if sitting on a chair with feet flat on the ground and retaining the posture when the chair is removed). (5) Naishadyik-To sit cross-legged. (6) Atapak-To remain exposed to the sun or other sources of heat. (7) Apravritak-To remain unclad. (8) Akanduyak - To resolve net to scratch any part of the body when itching. (9) Anishthivak-To resolve not to spit. (10) Sarvagatra-parikarm-vibhusha-vipramukt-To resolve to refrain from any and all cosmetic care of the body (bath, dress, paint, perfume, embellish etc.)
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