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Elaboration There are variations in the names in Antakrit Dasha and Anuttaropapatik Dasha. This could be due to variant readings of original texts. For present names refer to the available editions.
११५. आयारदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-वीसं असमाहिट्ठाणा, एगवीसं सबला, तेत्तीसं आसायणाओ, अट्ठविहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिट्ठाणा, एगारस उवासगपडिमाओ,
बारस भिक्खुपडिमाओ, पज्जोसवणाकप्पो, तीसं मोहणिज्जट्ठाणा, आजाइट्ठाणं। म ११५. आचारदशा (दशाश्रुतस्कन्ध) के दस अध्ययन हैं-(१) बीस असमाधिस्थान, (२) इक्कीस
शबलदोष, (३) तेतीस आशातना, (४) अष्टविध गणिसम्पदा, (५) दस चित्त समाधिस्थान, (६) ग्यारह
उपासकप्रतिमा, (७) बारह भिक्षुप्रतिमा, (८) पर्युषणाकल्प, (९) तीस मोहनीयस्थान, + (१०) आजातिस्थान।
115. There are ten chapters in Achaar Dasha (Dashashrutskandh) (1) Twenty Asamadhisthaan, (2) Twenty one Shabal Dosh, (3) Thirty three Ashatana, (4) Ashtavidh Ganisampada, (5) Ten Chittasamadhi Sthaan, (6) Eleven Upasak Pratima, (7) Twelve Bhikshu Pratima,
(8) Paryushana Kalp, (9) Thirty Mohaniya Sthaan and (10) Ajaitshtaan. म ११६. पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, । आयरियभासियाई, महावीरभासिआई, खोमगपसिणाई, कोमलपसिणाई अद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई।।
११६. प्रश्नव्याकरणदशा के दस अध्ययन हैं, जैसे-(१) उपमा, (२) संख्या, (३) ऋषिभासित, + (४) आचार्यभाषित, (५) महावीरभाषित, (६) क्षौमकप्रश्न, (७) कोमलप्रश्न, (८) आदर्शप्रश्न, ॐ (९) अंगुष्ठप्रश्न, (१०) बाहुप्रश्न।
116. There are ten chapters in Prashnavyakaran Dasha-(1) Upama, (2) Sankhya, (3) Rishibhashit, (4) Acharyabhashit, (5) Mahavir Bhashit,
(6) Kshaumak Prashna, (7) Komal Prashna, (8) Adarsh Prashna, 4 (9) Angushtha Prashna and (10) Bahu Prashna.
विवेचन-प्रश्नव्याकरण के दस अध्ययनों का वर्णन जो यहाँ दिया है उनका वर्तमान में उपलब्ध ॐ प्रश्नव्याकरण से कुछ भी सम्बन्ध नहीं प्रतीत होता। सम्भव है कि मूल प्रश्नव्याकरण में नाना विद्याओं 9 और मंत्रों का निरूपण था, अतएव उसका किसी समय विच्छेद हो गया और उसकी स्थानपूर्ति के लिए
नवीन प्रश्नव्याकरण की रचना की गई हो, जिसमें पाँच आस्रवों और पाँच संवरों का विस्तृत वर्णन है। ॐ यह रचना कब किसने की यह प्रश्न विचारणीय है।
Elaboration-The names of ten chapters of Prashnavyakaran mentioned here have no resemblance with the names in the available editions. It is possible that original Prashnavyakaran dealt with a
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दशम स्थान
(533)
Tenth Sthaan
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