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________________ 4555555555555555555555555555555555555 + (२) श्रमण भगवान महावीर श्वेत पंखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध म हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर शुक्लध्यान को प्राप्त होकर विचरने लगे। ॐ (३) श्रमण भगवान महावीर चित्र-विचित्र पंखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर ने स्व-समय और पर-समय का निरूपण करने * वाले द्वादशांग गणिपिटक का व्याख्यान किया, प्रज्ञापन किया, प्ररूपण किया, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन कराया। वह द्वादशांग गणिपिटक आचारांग से यावत् दृष्टिवाद तक का है। (४) श्रमण भगवान महावीर सर्वरत्नमय दो बड़ी मालाओं को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर ने दो प्रकार के धर्म की प्ररूपणा की। जैसे-अगारधर्म (श्रावकधर्म) और अनगार धर्म (साधुधर्म)। | (५) श्रमण भगवान महावीर एक महान् श्वेत गोवर्ग को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके के फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर का चार वर्ण से व्याप्त संघ हुआ। जैसे- (१) श्रमण, (२) श्रमणी, (३) श्रावक, (४) श्राविका। (६) श्रमण भगवान महावीर सर्व ओर से प्रफुल्लित कमलों वाले एक महान् सरोवर को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की। जैसे-(१) भवनवासी, (२) वानव्यन्तर, (३) ज्योतिष्क और (४) वैमानिक। (७) श्रमण भगवान महावीर में एक महान् छोटी-बड़ी लहरों से व्याप्त महासागर को स्वप्न में 9 भुजाओं से पार किया हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए, उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर ने अनादि, ॐ अनन्त, प्रलम्ब और चार अन्त (गति) वाले संसार रूपी कान्तार (महावन) या भवसागर को पार किया। (८) श्रमण भगवान महावीर तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध ॐ हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर को अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, पूर्ण, + प्रतिपूर्ण केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुआ। ॐ (९) श्रमण भगवान महावीर हरित और वैडूर्य वर्ण वाले अपने आँत-समूह के द्वारा मानुषोत्तर पर्वत को सर्व ओर से आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप ॐ श्रमण भगवान महावीर की देव, मनुष्य और असुरों के लोक में उदार, कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लाघा व्याप्त हुई कि श्रमण भगवान महावीर ऐसे महान् हैं, श्रमण भगवान महावीर ऐसे महान् हैं, इस प्रकार से उनका यश तीनों लोकों में फैल गया। (१०) श्रमण भगवान महावीर मन्दर-पर्वत पर मन्दर-चूलिका के ऊपर एक महान् सिंहासन पर ॐ अपने को स्वप्न में बैठा हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर ने देव, + मनुष्यों और असुरों की परिषद् के मध्य में विराजमान होकर केवलि-प्रज्ञप्त धर्म का आख्यान किया, प्रज्ञापन किया, प्ररूपण किया, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन कराया। al - . - - . IPIP गगनाnamanna | स्थानांगसूत्र (२) (526) Sthaananga Sutra (2) 四听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听B Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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