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________________ 95555555555555555555555555555555555555555555 ए फ ) )) )) ) )) ) )) ) ) ) )) ) ) ) ) ) )) ) ascetic or guru for some time in order to acquire special expertise of knowledge, perception and conduct. (for more details refer to Illustrated Anuyogadvara Sutra, part-1, aphorism-206 and Uttaradhyayan Ch. 26). दस महा स्वप्न पद (स्वप्न) DAS-MAHA-SVAPNA-PAD (SEGMENT OF TEN GREAT DREAMS) DREAMS १०३. (क) समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा (१) एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे। (२) एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (३) एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (४) एगं च णं महं दामदुगं के सब्बरयणामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (५) एगं च णं महं सेतं गोवरगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (६) एगं च णं महं पउमसरं सवओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (७) एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्सकलितं भुयाहिं तिणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (८) एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (९) एगं च णं महं म हरि-वेरुलिय-वण्णाभेणं णियएणमंतेणं माणुसुत्तरं पव्वतं सब्बतो समंता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। (१०) एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उवरि सीहासणवरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। १०३. (क) श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में (वैशाख शुक्ल नवमी की रात) इन दस महास्वप्नों को देखकर प्रतिबुद्ध हुए, जैसे (१) एक महान् घोर रूप वाले, दीप्तिमान् ताड़ वृक्ष जैसे लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया, ॐ यह देखकर प्रतिबुद्ध हुए। (२) एक महान् श्वेत पंख वाले पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। (३) एक महान् चित्र-विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। __ (४) सर्वरत्नमयी दो बड़ी मालाओं को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। (५) एक महान् श्वेत गोवर्ग (गायों का समूह) को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। (६) एक महान् सर्व ओर से प्रफुल्लित कमल वाले सरोवर को देखकर प्रतिबुद्ध हुए। (७) एक महान्, छोटी-बड़ी लहरों से व्याप्त महासागर को स्वप्न में भुजाओं से पार किया हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए। (८) एक महान्, तेज से जाज्वल्यमान सूर्य को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। | दशम स्थान (523) Tenth Sthaan 5555555555555555555 55558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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