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निमित्त से असत्य बोलना। (८) भय के निमित्त से असत्य बोलना। (९) आख्यायिका अर्थात् । म कथा-कहानी को सरस या रोचक बनाने के निमित्त से असत्य मिश्रण कर बोलना। (१०) दूसरों को
पीड़ा-कारक सत्य भी असत्य है। जैसे-काने को काना कहकर पुकारना। उपघात के निमित्त से मृषा या । 卐 असत् वचन बोलना।
90. Mrisha vachan (false statement) is of ten kinds—(1) to tell a lie out of anger, (2) to tell a lie out of conceit, (3) to tell a lie out of deceit, (4) to tell a lie out of greed, (5) to tell a lie out of attachment, (6) to tell a lie out of aversion, (7) to tell a lie out of mirth, (8) to tell a lie out of fear, (9) to tell a lie in order to make a story interesting and (10) telling a
hurting truth is also considered a lie. For example to call a blind, blind. * Also to tell a lie with the intention of hurting or damaging some one.
९१. दसविधे सच्चामोसे पण्णत्ते, तं जहा-उप्पण्णमीसए, विगतमीसए, उप्पण्णविगतमीसए, 卐 जीवमीसए, अजीवमीसए, जीवाजीवमीसए, अणंतमीसए, परित्तमीसए, अद्धामीसए, अद्धद्धामीसए।
९१. सत्यमृषा (मिश्र) वचन दस प्रकार के हैं__(१) उत्पन्न-मिश्रक-वचन-उत्पत्ति से संबद्ध सत्य-मिश्रित असत्य वचन बोलना। जैसे–'आज इस ॐ गाँव में दस बच्चे उत्पन्न हुए हैं।' ऐसा बोलने में एक अधिक या हीन भी हो सकता है।
(२) विगत-मिश्रक-वचन-विगत अर्थात् मरण से संबद्ध सत्य-मिश्रित असत्य वचन बोलना। म जैसे-'आज इस नगर में दस व्यक्ति मर गये हैं।' ऐसा बोलने पर एक अधिक या हीन भी हो सकता है।
(३) उत्पन्न-विगत-मिश्रक-उत्पत्ति और मरण से सम्बद्ध सत्य मिश्रित असत्य वचन बोलना। जैसेआज इस नगर में दस बच्चे उत्पन्न हुए और दस ही बूढ़े मर गये हैं। ऐसा बोलने पर इससे एक-दो हीन या अधिक का जन्म या मरण भी सम्भव है।
(४) जीव-मिश्रक-वचन-अधिक जीते हुए कृमि-कीटों के समूह में कुछ मृत जीवों के होने पर भी उसे जीवराशि कहना।
(५) अजीव-मिश्रक-वचन-अधिक मरे हुए कृमि-कीटों के समूह में कुछ जीवितों के होने पर भी ॐ उसे मृत या अजीवराशि कहना।
(६) जीव-अजीव-मिश्रक-वचन-जीवित और मृत राशि में संख्या को कहते हुए कहना कि इतने जीवित हैं और इतने मृत हैं। ऐसा कहने पर एक-दो के हीन या अधिक जीवित या मृत की भी संभावना है।
(७) अनन्त-मिश्रक-वचन-पत्रादि संयुक्त मूल कन्दादि वनस्पति में यह अनन्तकाय है' ऐसा वचन बोलना अनन्त-मिश्रक मृषा वचन है। क्योंकि पत्रादि में अनन्त नहीं, किन्तु परीत (सीमित संख्यात या ॐ असंख्यात) ही जीव होते हैं।
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| स्थानांगसूत्र (२)
(510)
Sthaananga Sutra (2)
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