________________
மகதத்திதிசுததததமி****ழ******************ழிக
卐
(६) सन्तोष - निर्लोभता (अल्प इच्छा)। (७) अस्ति- जब जिस वस्तु की आवश्यकता हो, तब उसकी पूर्ति 5 हो जाना। (८) शुभभोग - सुन्दर, रम्य भोगों की प्राप्ति होना । (९) निष्क्रमण - प्रव्रजित होने का सुयोग मिलना । (१०) अनाबाध - जन्म - मृत्यु आदि की बाधाओं से रहित मुक्ति-सुख ।
फफफफ
卐
卐
83. Sukha (joy) is of ten kinds (1) Aarogya (good health), (2) Deergh 5 ayushya (long life), (3) Adhyata (affluence), (4) Kaam (joys of sound and 5 beauty), (5) Bhog (joys of smell, taste and touch ), ( 6 ) Santosh 5 (contentment), (7) Asti (fulfillment), (8) Shubh-bhog (pleasures and 卐 enjoyments), (9) Nishkraman (renunciation) and (10) Anabadh ( freedom 5 from obstacles of life and death; liberation).
फ्र
卐
फ्र
- विशोधि-पद UPAGHAT VISHODHI-PAD
उपघात
(SEGMENT OF IMPURITY AND PURITY)
८४. दसविधे उवघाते पण्णत्ते, तं जहा - उग्गमोवघाते, उप्पायणोवघाते, (एसणोवघाते, परिकम्मोवघाते), परिहरणोवघाते, णाणोवघाते, दंसणोवघाते, चरित्तोवघाते, अचियत्तोवघाते, सारक्खणोवघाते ।
卐
८४. उपघात- (दोष सेवन से होने वाली चारित्र हानि ) दस प्रकार का है - (१) उद्गमदोष - भिक्षा के उद्गम सम्बन्धी दोष से होने वाला उपघात, (२) उत्पादनादोष - भिक्षासम्बन्धी उत्पाद से होने वाला चारित्र का उपघात । (३) एषणादोष-गोचरी के दोष से होने वाला चारित्र का उपघात । (४) परिकर्मदोष-वस्त्र- 5 पत्र आदि के सँवारने से होने वाला चारित्र का उपघात । (५) परिहरणदोष-अकल्प्य उपकरणों के उपभोग फ से होने वाला चारित्र का उपघात । (६) प्रमाद आदि से होने वाला ज्ञान का उपघात । (७) शंका आदि से फ्र होने वाला दर्शन का उपघात । (८) समितियों के यथाविधि पालन न करने से होने वाला चारित्र का उपघात । (९) अप्रीति या अविनय से होने वाला विनय आदि गुणों का उपघात । (१०) संरक्षण-उपघातशरीर, उपधि आदि में मूर्च्छा रखने से होने वाला परिग्रह-विरमण का उपघात ।
卐
Jain Education International
5
(505)
பூமிமிமிததமிழ************************சுழி
84. Upaghat (impairment of conduct due to impurity or fault) is of ten kinds (1) Udgamopaghat-impairment of conduct due to faults of accepting alms (2) Utpadanopaghat-impairment of conduct due to faults 5 of producing alms. (3) Eshanopaghat-impairment of conduct due to faults of alms seeking. (4) Parikarmopaghat-impairment of conduct due to faults related to extra care of garb, bowls and other ascetic equipment. (5) Pariharanopaghat-impairment of conduct due to using prohibited equipment. (6) Jnanopaghat-- Impairment of jnana (knowledge) due to फ्र stupor and other faults. (7) Darshanopaghat - Impairment of darshan 5 (perception/faith) due to doubt. (8) Chaaritropaghat-Impairment of फ्र chaaritra (right conduct) due to improper observation of samitis (self சு regulation). (9) Apriti-upaghat-Impairment of virtues including vinaya फ्र
फ्र
卐
दशम स्थान
Tenth Sthaan
卐
சு
卐
For Private & Personal Use Only
卐
சு
फ्र
卐
卐
卐
www.jainelibrary.org