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भवनवासि-पद BHAVAN-VASI-PAD (SEGMENT OF ABODE DWELLING GODS)
८१. दसविहा भवणवासी देवा पण्णत्ता, तं जहा-असुरकुमारा जाव थणियकुमारा।
८१. भवनवासी देव दस प्रकार के हैं, जैसे-(१) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३) सुपर्णकुमार, (४) विद्युत्कुमार, (५) अग्निकुमार, (६) द्वीपकुमार, (७उदधिकुमार, (८) दिशाकुमार, (९) वायुकुमार, (१०) स्तनितकुमार।
81. Bhavan-vasi gods (abode dwelling gods) are of ten kinds(1) Asur-kumar, (2) Naag-kumar, (3) Suparn-kumar, (4) Vidyut-kumar, (5) Agni-kumar, (6) Dveep-kumar, (7) Udadhi-kumar, (8) Disha-kumar, (9) Vayu-kumar, and (10) Stanit-kumar. ८२. एएसि णं दसविधाणं-भवणवासीणं देवाणं दस चेइयरुक्खा पण्णत्ता, तं जहा
अस्सत्थ सत्तिवण्णे, सामलि उंबर सिरीस दहिवण्णे।
वंजुल-पलास-वग्धा, तते य कणियाररुक्खे ॥१॥ (संग्रहणी-गाथा) ८२. इन दसों प्रकार के भवनवासी देवों के दस चैत्यवृक्ष होते हैं-(१) असुरकुमार का-अश्वत्थ (पीपल)। (२) नागकुमार का-सप्तपर्ण (सात पत्ते वाला) वृक्ष विशेष। (३) सुपर्णकुमार का-शाल्मली (सेमल) वृक्ष। (४) विद्युत्कुमार का-उदुम्बर (गूलर) वृक्ष। (५) अग्निकुमार का-शिरीष (सिरीस) वृक्ष। (६) द्वीपकुमार का-दधिपर्ण वृक्ष। (७) उदधिकुमार का-वंजुल (अशोक वृक्ष)। (८) दिशाकुमार का-पलाश में वृक्ष। (९) वायुकुमार का-व्याघ्र (लाल एरण्ड) वृक्ष। (१०) स्तनितकुमार का-कर्णिकार (कनेर) वृक्ष।
82. These ten kinds of abode dwelling gods have ten kinds of Chaityavriskhas (temple-trees)-(1) Ashvattha tree (Ficus religiosa) of Asur-kumar, (2) Saptaparna tree (Alstonia scholaris) of Naag-kumar, (3) Shalmali tree (silk-cotton; Bombax ceiba) of Suparn-kumar, (4) Udumbar tree (Ficus glomerata) of Vidyut-kumar, (5) Shirish tree (Acacia) of Agni-kumar, (6) Dadhiparna tree of Dveep-kumar, (7) Vanjul tree (Ashoka) of Udadhi-kumar, (8) Palash tree (Butea monosperma) of Disha-kumar, (9) Vyaghra tree (red castor-oil plant) of Vayu-kumar, and (10) Karnikaar tree (kaner; oleander) of Stanit-kumar. सौख्य-पद SAUKHYA -PAD (SEGMENT OF JOY) . ८३. दसविधे सोक्खे पण्णत्ते, तं जहा
आरोग्ग दीहमाउं, अड्डेजं काम भोग रांतोसे।
अत्थि सुहभोग णिक्खम्ममेव तत्तो अणबाहे॥१॥ ८३. सुख दस प्रकार का है, जैसे-(१) आरोग्य (नीरोगता)। (२) दीर्घ आयुष्य। (३) आढ्यता (धन की सम्पन्नता)। (४) काम (शब्द और रूप का सुख)। (५) भोग (गन्ध, रस और स्पर्श का सुख)।
ॐ
स्थानांगसूत्र (२)
(504)
Sthaananga Sutra (2)
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