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________________ 卐 555 卐 फफफफफफफ क्रोधोत्पत्तिस्थान- पद KRODHOTPATTISTHAAN PAD (SEGMENT OF ORIGIN OF ANGER) ७. दसहि ठाणेंहिं कोधुप्पत्ती सिया, (१ - २) तं जहा - मणुण्णाई मे सद्द-फरिस - रसरूव - गंधाई अवहरिंसु । अमणुण्णाई मे सद्द-फरिस - रस- रूव - गंधाई उवहरिंसु । ( ३ - ४ ) मणुण्णाई मे सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधाई अवहरइ । अमणुण्णाई मे सहफरिस - ( रस - रूव) - गंधाई उवहरति । ( ५ - ६ ) मणुण्णाई मे सद्द - (फरिस - रस- रूव-गंधाई ) अवहरिस्सति । अमणुण्णाई मे सद्द(फरिस - रस - रूव - गंधाई) उवहरिस्सति । ७ - ८ ) मणुणाई मे सद्द - (फरिस - रस- - रूव) - गंधाई अवहरिसु वा अवहरइ वा अवहरिस्सति वा अणुणाई मे सद्द - (फरिस - रस- रूव - गंधाई) उवहरिंसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति वा । (९) मणुण्णामणुण्णाई मे सद्द - (फरिस - रस - रूव - गंधाई ) अवहरिंसु वा अवहरति वा अवहरिस्सति वा, उवहरिंसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति वा । (१०) अहं च णं आयरियं-उवज्झायाणं सम्मं वट्टामि, ममं च णं आयरिय-उवज्झाया मिच्छं विप्पडिवण्णा । ७. दस कारणों से क्रोध की उत्पत्ति होती है (१) अमुक पुरुष ने (अतीत में) मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण किया। (२) अमुक पुरुष ने मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध प्राप्त कराये हैं (इस स्मृति से)। (३) वह पुरुष ( वर्तमान में) मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण करता है। (४) वह पुरुष मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध को प्राप्त कराता है। (५) वह पुरुष (भविष्य में) मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण करेगा । (इस आशंका से ) (६) वह पुरुष मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध प्राप्त करायेगा । (७) वह पुरुष मेरे मनोज्ञ शब्द, रस और गन्ध का अपहरण करता था, अपहरण करता है और अपहरण करेगा (इस चिन्तन से)। (८) उस पुरुष ने मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध प्राप्त ५ कराये हैं । (९) उस पुरुष ने मेरे मनोज्ञ तथा अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण किया है, करता है और करेगा तथा प्राप्त कराये हैं, कराता है और करायेगा । 4 (१०) मैं आचार्य और उपाध्याय के प्रति सम्यक् व्यवहार करता हूँ, परन्तु आचार्य और उपाध्याय मेरे साथ प्रतिकूल व्यवहार करते हैं । ( इस मिथ्या धारणा से) 7. There are ten reasons for rise of anger - (Due to recollection.) (1) That person deprived me of the sound, touch, taste, smell, vision and smell I liked. (2) That person made me experience the sound, touch, taste, smell, vision and smell I disliked. स्थानांगसूत्र (२) Jain Education International (470) For Private & Personal Use Only Sthaananga Sutra (2) फ्र hhhhh 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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