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६९. नोकषाय वेदनीय कर्म नौ प्रकार का है, जैसे-(१) स्त्रीवेद, (२) पुरुषवेद, (३) नपुंसकवेद, + (४) हास्य वेदनीय, (५) रति वेदनीय, (६) अरति वेदनीय, (७) भयवेदनीय, (८) शोक वेदनीय,
(९) जुगुप्सा वेदनीय। ___69. Nokashaya vedaniya karmas are of nine kinds-(1) Stri-veda (causing feminine gender), (2) Purush-veda (causing masculine gender), (3) Napumsak-ved (causing neuter gender), (4) Hasya vedaniya (causing
laughter), (5) Rati vedaniya (causing indulgence), (6) Arati vedaniya 45 (causing non-indulgence), (7) Bhaya vedaniya (causing fear), (8) Shok 4 vedaniya (causing grief) and (9) Jugupsa vedaniya (causing disgust).
विवेचन-क्रोध, मान आदि चार कषाय के अनन्तानुबन्धी आदि १६ भेद होते हैं। इन सोलह कषायों ॐ के साहचर्य से जो मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं, वे कषायों के साथ मिलकर अपना फल देते हैं, उन्हें 卐 'नो कषाय' कहा गया है। नो कषाय के रूप में अनुभव में आने वाले कर्म नो कषाय वेदनीय हैं।
Elaboration—There are 16 categories of passions (anger, etc.) including Anantanubandhi. The consequences of perversions created due to association with these sixteen passions are called nokashaya. The karmas that come to fruition in the form of experience of these nokashayas are called nokashaya vedaniya karmas. कुलकोटि-पद KULAKOTI-PAD (SEGMENT OF SPECIES)
७०. चउरिदियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणिपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता। ७१. भुयगपरिसप्पथलयर-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणिपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता।
७०. चतुरिन्द्रिय जीवों की नौ लाख जाति-कुलकोटियाँ हैं। ७१. पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक स्थलचरभुजग-परिसरों की नौ लाख जाति-कुलकोटियाँ हैं।
70. Chaturindriya (four-sensed beings) have nine lac (hundred thousand) species (jati kulakoti) in their genuses (yoni pramukh). 70. Panchendriya tiryanch-yonik sthalachar parisarp (limbed reptilian
five-sensed animals) have nine lac (hundred thousand) species (jati fi kulakoti) in their genuses (yoni pramukh). 41 9790744-46 PAAP-KARMA-PAD (SEGMENT OF DEMERITORIOUS KARMA)
७२. जीवा णं णवट्ठाणणिव्यत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिसंति वा, म तं जहा-पुढविकाइयणिव्यत्तिते, (आउकाइयणिव्वत्तिते, तेउकाइयणिव्वत्तिते, वाउकाइयणिव्वत्तिते, +वणस्सइकाइयणिव्वत्तिते, बेइंदियणिव्वत्तिते, तेइंदियणिव्वत्तिते, चउरिदियणिव्यत्तिते,) पंचिंदियणिव्वत्तिते।
एवं-चिण-उवचिण (बंध-उदीर-वेद तह) णिज्जरा चेव।
जागा
स्थानांगसूत्र (२) ।
(460)
Sthaananga Sutra (2)
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