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ॐ केशलोच, ब्रह्मचर्यवास और परगृहप्रवेश कर लब्ध-अपलब्ध वृत्ति (आदर-अनादरपूर्वक प्राप्त भिक्षा)
का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए नग्नभाव, मुण्डभाव, . स्नानत्याग, भूमिशय्या फलकशय्या, काष्ठशय्या, केशलोच, ब्रह्मचर्यवास और परगृहप्रवेश कर म लब्ध-अलब्ध वृत्ति का निरूपण करेंगे।
___ आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे आधाकर्मिक, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूरक, पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आछेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वादलिकाभक्त, प्राघूर्णिकभक्त, मूलभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन और हरितभोजन का निषेध किया है, उसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थोंके लिए आधाकर्मिक, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूरक, पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आछेद्य, अनिसृष्टिक, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वार्दलिकाभक्त, प्राघूर्णिकभक्त, मूलभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन बीजभोजन और हरितभोजन का निषेध करेंगे। ___आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे-प्रतिक्रमण और अचलेतायुक्त (अल्प वस्त्र) पाँच महाव्रतरूप धर्म का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए प्रतिक्रमण और अचेलतायुक्त पाँच महाव्रतरूप धर्म का निरूपण करेंगे।
आर्यों ! मैंने श्रमणोपासकों के लिए जैसे पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार के श्रावकधर्म का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप ॐ बारह प्रकार के श्रावकधर्म का निरूपण करेंगे।
___ आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड का निषेध किया है, इसी ॐ प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड का निषेध करेंगे।
62. (e) O noble ones ! As I have defined nagnabhaava (state of being unclad), mundabhaava (state of being tonsured), snana-tyag (not taking a bath), adanta-dhavan (not brushing teeth), chhatra-dhaaran-tyag (not using umbrella), upanaha-tyag (not wearing shoes), bhumi shayya (sleeping on the ground), phalak shayya (sleeping on a strip of wood), kashtha shayya (sleeping on a wooden plank), keshaloch (pulling out hair), brahmacharya vaas (practicing celibacy and accepting alms respectfully and disrespectfully from others' homes for Shraman nirgranths; in the same way Arhat Mahapadma will define
nagnabhaava, mundabhaava, snana-tyag, adanta-dhavan, chhatra___dhaaran-tyag, upanaha-tyag, bhumi shayya, phalak shayya, kashtha
shayya, keshaloch, brahmacharya vaas and accepting alms respectfully and disrespectfully from others' homes for Shraman nirgranths.
O noble ones! As I have prohibited adhakarmic, auddeshik, mishrajat, 4 adhyavapurak, putik, kreet, praamitya, aachhedya, anishrisht, abhyahrit,
kaanatarbhakt, durbhikshabhakt, glaan-bhakt, vardilikabhakt, praghurnikabhakt, mool-bhojan, kanda bhojan, phal bhojan, beej bhojan,
四听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F5555555555555听听听听听听听听听听听听听
| स्थानांगसूत्र (२)
(454)
Sthaananga Sutra (2)
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