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Devasen will frequent the middle of the city riding that white four卐 tusked elephant.
At that time many regional kings (raja), influential and rich persons i (ishvar), knights of honour (talavar), landlords (mandavik), heads of large
families (kautumbik), affluent people (ibhya), established merchants 45 (shreshti), commanders (senapati), caravan chiefs (sarthaval
others in the city will converse—“Beloved of gods! Our king has a gem of 5 an elephant as white as the inner surface of a white conch-shell and four tusks. Therefore, the third name of our king should be Vimalavahan. Since that moment the third name of king Devasen will be Vimalavahan.
६२. (ग) तए णं से विमलवाहणे राया तीसं वासाई अगारवासमज्झे वसित्ता अम्मापितीहिं देवत्तं गतेहिं गुरुमहत्तरएहिं अब्भणुण्णाते समाणे, उर्दुमि सरए, संबुद्धे अणुत्तरे मोक्खमग्गे पुणरवि है लोगंतिएहि जीयकप्पिएहिं देवेहिं, ताहिं इटाणि कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं उरालाहिं
कल्लाणाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगलाहिं सस्सिरिआहिं वग्गूहिं अभिणंदिज्जमाणे अभियुब्बमाणे य जबहिया सुभूमिभागे उज्जाणे एगं देवदूसमादाय मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाहिति। से णं
भगवं जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता (अगाराओ अणगारियं) पव्वयाहिति तं चेव दिवसं सयमेयमेतारूवं + अभिग्गहं अभिगिहिहिति-जे केइ उवसगा उप्पज्जिहिति, तं जहा-दिव्वा वा माणुसा वा : तिरिक्खजोणिया वा ते सव्वे सम्मं सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्सइ अहियासिस्सइ।
तए णं से भगवं अणगारे भविस्सति-इरियासमिते भासासमिते एवं जहा वद्धमाणसामी तं चेव मणिरवसेसं जाव अव्वावारविउसजोगजुत्ते।
तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स दुवालसहिं संवच्छरेहिं वीतिक्कंतेहिं तेरसहि य । + पक्खेहिं तेरसमस्स णं संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अणुत्तरेणं णाणेणं जहा भावणाते
केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिहिति। जिणे भविस्सति केवली सवण्णू सबदरिसी सणेरइय जाव पंच महब्बयाई सभावणाई छच्च जीवणिकाए धम्मं देसमाणे विहरिस्सति।
६२. (ग) तब वह विमलवाहन राजा तीस वर्ष तक गृहस्थ अवस्था में रहकर, माता-पिता के : स्वर्गवासी हो जाने पर, गुरुजनों और महत्तर परिवार के मुखिया पुरुषों की अनुज्ञा लेकर शरद् ऋतु में ॐ जीताचार का पालन करने वाले, लोकान्तिक देवों द्वारा अनुत्तर मोक्षमार्ग के लिए संबुद्ध होंगे। तब वे 卐 इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनःप्रिय, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, माँगलिक श्रीकार-सहित वाणी से
अभिनन्दित और संस्तत होते हए नगर के बाहर 'सभमिभाग' नाम के उद्यान में एक मुण्डित हो अगार से अनगार अवस्था में प्रव्रजित होंगे।
वे भगवान जिस दिन मुण्डित होकर प्रव्रजित होंगे, उसी दिन वे स्वयं ही इस प्रकार का अभिग्रह है ग्रहण करेंगे
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| स्थानांगसूत्र (२)
(448)
Sthaananga Sutra (2)
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