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5 तीर्थंकर नामनिर्वतन - पद TIRTHANKAR NAAM NIRVATAN PAD
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६०. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तित्थंसि णवहिं जीवेहिं तित्थगरणामगोत्ते कम्मे
5 णिव्यत्तिते, तं जहा - सेणिएणं, सुपासेणं, उदाइणा, पोट्टिलेणं अणगारेणं, दढाउणा, संखेणं, सतपणं, सुलसाए सावियाए, रेवतीए ।
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(१)
६०. श्रमण भगवान महावीर के तीर्थं में नौ जीवों ने तीर्थंकर नाम - गोत्र कर्म अर्जित किया था । श्रेणिक, (२) सुपार्श्व, (३) उदायी, (४) पोट्टिल अनगार, (५) दृढायु, (६) श्रावक शंख,
(७) श्रावक शतक, (८) श्राविका सुलसा, (९) श्राविका रेवती ।
(SEGMENT OF ACQUIRING TIRTHANKAR NAAM KARMA)
60. Nine souls in the order of Shraman Bhagavan Mahavir acquired Tirthankar naam-gotra karma-(1) Shrenik, (2) Suparshva, (3) Udayi, (4) Pottila Anagar, (5) Dridhayu, (6) Shravak Shankh, (7) Shravak Shatak, (8) Shravika Sulasa and (9) Shravika Revati.
विवेचन - तीर्थंकर नाम गोत्रकर्म बंध के कारण बीस स्थानकों की पुनः - पुनः आराधना करने का
वर्णन ज्ञाता सूत्र में आता है। इन्हीं २० स्थानकों को संक्षिप्त कर १६ कारण भावना के रूप में तत्त्वार्थ
सूत्र अध्याय ६ में कथन है। सूत्र में, भगवान महावीर के तीर्थ में तीर्थंकर गोत्र कर्म बाँधने वाले नौ
5 महान आत्माओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(१) श्रेणिक - मगधपति श्रेणिक का वर्णन निरयावलिका में आता है। अन्य सूत्रों में भी उनका नामोल्लेख मिलता है । त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में इनका विस्तृत वर्णन है।
(२) सुपार्श्व - ये भगवान महावीर के चाचा थे । विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है । (३) उदायी - कोणिक पुत्र उदायी । विशेष वर्णन त्रिषष्टि० परिशिष्ट पर्व सर्ग ६
'आया है।
(४) पोट्टिल अनगार - अनुत्तरौपपातिक सूत्र में पोट्टिल अनगार का वर्णन आता है । परन्तु प्रस्तुत पोट्टल अनगार कोई अन्य थे। इनका वर्णन नहीं मिलता है।
(५) दृढायु - इनके विषय में भी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।
( ६ - ७) शंख - शतक - शंख श्रावक का यत्किंचित वर्णन भगवती सूत्र श. १२ । उ. १ तथा उद्देशक २०-२१ में है ।
(८) सुलसा - राजगृह के राजा प्रसेनजित के रथिक नाग की पत्नी थी। यह दृढ़ सम्यक्त्वधारिणी थी। इसके ३२ पुत्र थे । वृत्ति में इसका जीवन वृत्तान्त मिलता है।
(९) रेवती - भगवान महावीर की मुख्य श्राविका थी । गोशालक द्वारा तेजोलेश्या छोड़ने पर भगवान महावीर आहत हुए तब सिंह अनगार रेवती श्राविका से बीजोरा पाक लेकर आया। उसके सेवन से भगवान का रोग शान्त हुआ । विशेष वर्णन भगवती शतक १५ में मिलता है।
ये सभी आगामी चौबीसी में तीर्थंकर होंगे। (विस्तार हेतु ठाणं पृष्ठ ८८३-८८५ देखें)
नवम स्थान
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( 441 )
Ninth Sthaan
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