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1-1-1-नानानानानानामा
प्रतिमा-पद PRATIMA-PAD (SEGMENT OF SPECIAL CODES)
४१. णवणवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीतीए रातिदिएहिं चाहिं य पंचुत्तरेहिं भिक्खासतेहिं अहासुत्तं (अहाअत्थं अहातच्चं अहामगं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया) आराहिया यावि भवति।
४१. नव-नवमिका भिक्षुप्रतिमा ८९ दिन-रात तथा ४०५ भिक्षादत्तियों के द्वारा सूत्र, अर्थ, तत्त्व, कल्प के अनुसार तथा सम्यक् प्रकार काय से आचरित, पालित, शोधित, पूरित, कीर्तित और आराधित की जाती है।
41. The Nava-navamika Bhikshupratima (a specific practice with special codes) is sincerely observed (palit), purified (shodhit; for transgressions), completed (purit); for breaking fast), concluded (kirtit; break the fast) and successfully performed (aradhit) for 81 (9 x 9) days and nights with 405 bhikshadattis (servings of alms) according to the scriptures (yathasutra), correct interpretation (yatha-arth), prescribed procedure (yathamarg) and code of praxis (yathakalp), perfectly
following fundamentals (yathatattva), with equanimity (samata) and 5 touching the body (actually not just conceptually). प्रायश्चित्त-पद PRAYASHCHIT-PAD (SEGMENT OF ATONEMENT)
४२. णवविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा-आलोयणारिहे (पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे), मूलारिहे, अणवट्टप्पारिहे।
४२. प्रायश्चित्त नौ प्रकार का है, जैसे-(१) आलोचना के योग्य, (२) प्रतिक्रमण के योग्य, # (३) तदुभय-आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों के योग्य, (४) विवेक के योग्य, (५) व्युत्सर्ग के योग्य, । (६) तप के योग्य, (७) छेद के योग्य, (८) मूल के योग्य, (९) अनवस्थाप्य के योग्य।
42. Prayashchit (atonement) is of nine kinds—(1) requiring alochana (criticism), (2) requiring pratikraman (critical review), (3) tadubhaya (requiring both alochana and pratikraman) (4) requiring vivek (sagacity), (5) requiring vyutsarg (abstainment), (6) requiring tap (austerities), (7) requiring chhed (termination of ascetic state), (8) requiring mool (reinitiation) and (9) requiring anavasthapya (reinitiation when atonement has already been done). कूट-पद (दक्षिणवर्ती कूट) KOOT-PAD (SEGMENT OF PEAKS)
४३. जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दीहवेतड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
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नवम स्थान
(435)
Ninth Sthaan
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