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________________ अफ्र ת ת ת ת ת ת FELELELE Б फ 5 संघ से पृथक् करने का विधान है। यहाँ पर यह द्रष्टव्य है, चूँकि बिना किसी विशेष कारण के किसी साधु 5 को संघ से पृथक् करना वर्जित है। अतः इन कारणों का वर्णन आचार्य के लिए भी उपयोगी है। FEE उसके पश्चात् संयम की साधना में अग्रसर होने के लिए ब्रह्मचर्य का संरक्षण अत्यन्त उपयोगी व आवश्यक है। ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियाँ या बाड़ों का वर्णन (सूत्र ३) है। साधक के लिए नौ विकृतियों (विगयों) का वर्णन भी ब्रह्मचर्य सुरक्षा के लिए कवच का काम करता है । पाप के नौ स्थानों का और F पाप-वर्धक नौ प्रकार के श्रुत का परिहार भी आवश्यक है, प्रस्तुत स्थान में उनका भी वर्णन किया गया है। Л Fi सार संक्षेप नौवें स्थान में नव संख्याओं से सम्बन्धित विभिन्न विषयों का संकलन है। इसमें सर्वप्रथम विसंभोग का वर्णन (सूत्र 9 ) है । 'संभोग' शब्द यहाँ एकसमान धर्म का आचरण करने वाले साधुओं का एक मण्डली में बैठकर खान-पान आदि व्यवहार अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। संघ मर्यादा की दृष्टि से सांभोगिक साधु को नवम स्थान 5 म 5 5 5 तीर्थ में तीर्थंकर नामकर्म का बंध करने वाले नौ व्यक्तियों का कथन । इसी प्रसंग में तीर्थंकर नामकर्म בתתתתת - 855 इस स्थान में कुछ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन भी हुआ है। जैसे भगवान महावीर के बाँधने के बीस स्थानों की चर्चा है। तथा इसी सन्दर्भ में भगवान महावीर के अनन्य श्रद्धालु महाराज 5 5 श्रेणिक के भव-भवान्तर का वर्णन बहुत ही महत्त्व का है। इसमें भगवान महावीर का तत्त्व दर्शन व आचार दर्शन बड़े स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त हुआ है। सूत्र १३ में रोगोत्पत्ति के नौ कारणों का उल्लेख आरोग्य शास्त्र की दृष्टि से मनन करने योग्य है, साथ ही मनोविज्ञान की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इनमें आठ कारण तो शारीरिक रोगोत्पत्ति से सम्बन्धित हैं तथा नौवां कारण मानसिक रोगों को उत्पन्न करने वाला है। आज का चिकित्सा विज्ञान इस निष्कर्ष पर पहुँच रहा है कि समस्त रोगों की जड़ मनोविकार है। आज कुशल चिकित्सक वही माना जाता है जो शरीर मन दोनों की चिकित्सा साथ-साथ करता है। इस सन्दर्भ में प्रस्तुत प्रकरण चिन्तनमनन की विशेष दिशा दिखाता है। ईश्वर, तलवर आदि पदों पर नियुक्ति का वर्णन उस समय की राज व्यवस्था का दिग्दर्शन कराता है। इस प्रकार इस नवम स्थान में भगवान पार्श्वनाथ, भगवान महावीर तथा राजा श्रेणिक से सम्बन्धित बहुत ही उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है। अवगाहना, दर्शनावरण कर्म, नौ महानिधियाँ, आयुःपरिणाम, भावी तीर्थंकर, कुलकोटि, पापकर्म आदि पदों के द्वारा अनेक ज्ञातव्य विषयों का संकलन किया गया है। संक्षेप में यह स्थान अनेक दृष्टियों महत्त्वपूर्ण है। नवम स्थान Jain Education International (409) Ninth Sthaan For Private & Personal Use Only 2 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 59595 55 55 2 ********************************தமிழின் 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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