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555555555555555555555555555555555555/ ॐ ईसिपन्भाराति वा, तणूति वा, तणुतणूइ वा, सिद्धीति वा, सिद्धालएति वा, मुत्तीति वा, मुत्तालएति वा।
१०९. ईषत्प्राग्भारा पृथिवी के बहुमध्य देशभाग में आठ योजन लम्बे-चौड़े क्षेत्र का बाहल्य (मोटाई) आठ योजन है। ११०. ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के आठ नाम हैं। जैसे-(१) ईषत्, (२) ईषत्प्रग्भारा, (३) तनु, (४) तनुतनु, (५) सिद्धि, (६) सिद्धालय, (७) मुक्ति, (८) मुक्तालय। ____109. The eight Yojan long and wide area in the midsection of Ishatpragbhara prithvi is eight Yojan deep (thick). 110. Ishatpragbhara prithvi has eight names (1) Ishat, (2) Ishatpragbhara, (3) Tanu, (4) Tanutanu, (5) Siddhi, (6) Siddhalaya, (7) Mukti and (8) Muktalaya. अभ्युत्थातव्य-पद ABHYUTTHATAVYA-PAD (SEGMENT OF ALERTNESS)
१११. अट्टहिं ठाणेहिं सम्मं घडितव्वं जतितव्वं परक्कमितव्यं अस्सिं च णं अटे णो पमाएतव्वं भवति
(१) असुयाणं धम्माणं सम्मं सुणणताए अब्भुटेतव्वं भवति। (२) सुताणं धम्माणं ओगिण्हणयाए उवधारणयाए अब्भुटुंतव्वं भवति। (३) णवाणं कम्माणं संजमेणमकरणताए अन्भुट्टेयव्वं भवति। (४) पोराणाणं कम्माणं तवसा विगिंचणताए विसोहणताए अन्भुद्वैतव्वं भवति। (५) असंगिहीतपरिजणस्स संगिण्हताए अब्भुट्टेयव्वं भवति। (६) सेहं आयारगोयरं गाहणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति। (७) गिलाणस्स अगिलाए यावच्चकरणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति।
(८) साहम्मियाणमधिकरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सितो अपक्खग्गाही मज्झत्थभावभूते कहं णु साहम्मिया अप्पसद्दा अप्पझंझा अप्पतुमंतुमा उवसामणताए अन्भुट्टेयव्वं भवति।
१११. आठ स्थानों की प्राप्ति के लिए साधक सम्यक् चेष्टा करे, सम्यक् प्रयत्न करे, सम्यक् पराक्रम करे। इन आठों के विषय में कुछ भी प्रमाद (उपेक्षा) नहीं करना चाहिए
(१) अब तक नहीं सुने हुए धर्मों को सम्यक् प्रकार से सुनने के लिए जागरूक रहे। (२) सुने हुए धर्मों को मन से ग्रहण करे और उनकी स्थिति और स्मृति के लिए सतत् जागरूक रहे। (३) संयम के द्वारा नवीन कर्मों का निरोध करने के लिए जागरूक रहे। (४) तपश्चरण के द्वारा पुराने कर्मों को पृथक् करने और विशोधन करने के लिए जागरूक रहे।
(५) असंगृहीत परिजनों (तथा निराश्रित सहधर्मी) का संग्रह (अपने साथ सम्मिलित) करने के लिए जागरूक रहे।
| स्थानांगसूत्र (२)
(402)
Sthaananga Sutra (2)
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