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45. In the eight avakashantars (intervening space) of these eight 4 Krishnarajis are located the Vimaans of eight Lokantik Devas (gods 41 at the edge of universe)--(1) Archi, (2) Archimali, (3) Vairochan, 卐 (4) Prabhankar, (5) Chandrabh, (6) Suryabh, (7) Supratishthabh and (8) Agnyarchabh. ४६. एतेसु णं अट्ठसु लोगंतियविमाणेसु अट्ठविधा लोगंतिया देवा पण्णत्ता, तं जहा--
सारस्सतमाइच्चा, वण्ही वरुणा या गद्दतोया य।
तुसिता अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव बोद्धव्या॥१॥ (संग्रहणी-गाथा) ४६. इन आठों लोकान्तिक विमानों में आठ प्रकार के लोकान्तिक देव हैं। (१) सारस्वत, (२) आदित्य, (३) वह्नि, (४) वरुण, (५) गर्दतोय, (६) तुषित, (७) अव्याबाध, (८) अग्न्यर्च। 卐 46. In these eight Lokantik Vimaans there are eight Lokantik Devas
(1) Sarasvat, (2) Aditya, (3) Vahni, (4) Varun, (5) Gardatoya, (6) Tushit,
(7) Avyabadh and (8) Agnyarch. + ४७. एतेसि णं अट्ठण्हं लोगंतियदेवाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता।
४७. इन आठों लोकान्तिक देवों की जघन्य और उत्कृष्ट भेद से रहित-एक-समान स्थिति + आठ-आठ सागरोपम की है। 5 47. Without a variation of maximum and minimum, the common life \i span of each of these eight Lokantik Devas is eight Sagaropam.
विवेचन-नौवें स्थान में नौ लोकान्तिक देवों का कथन है। आठों के विमान कृष्णराजियों के बीच के म भाग में स्थित है तथा नौवाँ रिष्टाभ विमान सबके मध्य में स्थित है। उसमें रिष्ट नामक देव का आवास है।
तीर्थंकर जब दीक्षा का विचार करते हैं। तब ये देव आकर उनका वर्धापन कर संसार में धर्म का उद्योत करने की प्रार्थना करते हैं। (भगवती शतक ६, उ. ५)
Elaboration In the Ninth Sthaan there is a mention of nine Lokantik gods. Eight Vimaans are located in the middle of Krishna
ninth, Rishtabh Vimaan, is located at the center of all these. It is the 4 abode of Rishta Deva. When a Tirthankar decides to get initiated these 41 gods approach him to offer commendation and request him to spread the
light of religion. (Bhagavati Shatak 6/5) मध्यप्रदेश-पद MADHYA PRADESH-PAD (SEGMENT OF MIDDLE SECTIONS) ।
४८. अट्ठ धम्मत्थिकाय-मज्झपएसा पण्णत्ता। ४९. अट्ठ अधम्मत्थिकाय- (मज्झपएसा पण्णत्ता)। ५०. अट्ट आगासत्थिकाय- (मज्झपएसा पण्णत्ता)। ५१. अट्ठ जीव-मज्झपएसा पण्णत्ता।
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स्थानांगसूत्र (२)
(382)
Sthaananga Sutra (2)
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