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There he is a man with good appearance, good complexion, good smell, good taste and smooth touch. He is adorable, lovable, beautiful, 5 and worth cherishing. He is with a voice that is loud, sharp, adorable, lovable, beautiful, and worth cherishing.
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There, in the external and internal assemblies, he is also respected and recognized as master as well as invited to sit on a thrown meant for great persons. When he starts his speech four-five gods stand without being asked, and comment - “O Arya-born ! Utter more ! Speak more !”
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विवेचन - वृत्तिकार आचार्य अभदेव सूरि ने निम्न शब्दों की व्याख्या इस प्रकार की है
आभ्यन्तर परिषद् - पुत्र, कलत्र व स्थानीय देव - देवियाँ । बाह्य परिषद्- नौकर-चाकर सेवा करने वाले। आयुक्षय- आयुष्य कर्म के पुद्गलों का क्षय । भवक्षय- वर्तमान भव (पर्याय) का विनाश। स्थितिक्षय - आयुःस्थिति के बन्ध का क्षय । अन्तकुल- म्लेच्छ, छिंपक आदि कुल । प्रान्त कुल - चाण्डाल आदि कुल । तुच्छ कुल-छोटे परिवार व तुच्छ विचार वाले कुल । दरिद्र कुल-निर्धन कुल । भिक्खागकुल- भिक्षा माँगने वाले कुल । कृपणकुल- दान लेकर आजीविका चलाने वाले कु
आलोचना करने से निम्न आठ गुण निष्पन्न होते हैं
( १ ) लघुता - मन हल्का हो जाता है । (२) प्रसन्नता अनुभव करता है । (३) आत्म - पर नियंत्रिता - अपने व दूसरों पर अनुशासन करने की क्षमता आती है। (४) आर्जव - सरलता आती है । (५) शोधिदोषों को परिष्कार होता है। (६) दुष्कर करण - दुष्कर कार्य करने की सामर्थ्य बढ़ती है। (७) आदरजनता में सन्मान बढ़ता है । (८) निःशल्यता - मन की गाँठे खुलकर ग्रन्थि भेद हो जाता है। (वृत्ति. पत्र ३९७ - ३९९)
Elaboration-Abhayadev Suri, the commentator (Vritti), has interpreted the relevant technical terms as follows
Abhyantar parishad (internal assembly)-this includes sons, relatives and local gods and goddesses. Bahya parishad (external 5 assembly) — this includes subordinates and servants. Ayu-kshaya - destruction of life span determining karma particles. Bhava-kshayatermination of the present birth. Sthiti-kshaya-destruction of the karma determining the duration in present state. Ant-kul-low castes including Mlechchha and Chhimpak. Prant-kul-low castes including Chandal. Tuchchha kul-low castes with rustic habits. Daridra kuldestitute. Bhikshak kul-clans subsisting on begging. Kripan kul-clans subsisting on charity.
Following eight qualities are acquired by self-criticism
स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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