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5 ऊँची गति वाले और दीर्घस्थिति वाले देवों में उत्पन्न नहीं होता। वह देव होता है, किन्तु महाऋद्धि वाला, 5
महाद्युति वाला, महानुभाव वाला, महायशस्वी, महाबलशाली, महान् सौख्यवाला, ऊँची गति वाला और दीर्घ स्थिति वाला देव नहीं होता ।
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वहाँ देवलोक में उसकी जो बाह्य और आभ्यन्तर परिषद् होती है, वह भी न उसको आदर देती है, न उसे स्वामी के रूप में मानती है और न महान् व्यक्ति के योग्य आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित करती है। जब वह भाषण देना प्रारम्भ करता है, तब चार-पाँच देव बिना कहे ही खड़े हो जाते हैं और कहते हैं 'देव ! बहुत मत बोलो, बहुत मत बोलो।'
पुनः वह देव आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय के अनन्तर देवलोक से च्युत होकर यहाँ मनुष्यलोक मनुष्य भव में जो अन्तकुल, या प्रान्तकुल, या तुच्छकुल, या दरिद्रकुल, या भिक्षुककुल, या कृपणकुल हैं, या इसी प्रकार के अन्य हीन कुल हैं, उनमें मनुष्य के रूप में उत्पन्न होता है।
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वहाँ वह कुरूप, कुवर्ण, दुर्गन्ध युक्त, अनिष्ट रस और कठोर स्पर्शवाला पुरुष होता है। वह अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और मन को न गमने योग्य होता है। वह हीनस्वर, दीनस्वर, अनिष्टस्वर, अकान्तस्वर, अप्रियस्वर, अमनोज्ञस्वर अरुचिकरस्वर और अनादेय वचनवाला होता है।
वहाँ उसकी जो बाह्य और आभ्यन्तर परिषद् होती है, वह भी उसका न आदर करती है, न उसे 5 स्वामी के रूप में समझती है, न महान् व्यक्ति के योग्य आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित करती है। जब वह बोलने के लिए खड़ा होता है, तब चार-पाँच मनुष्य बिना कहे ही खड़े हो जाते हैं और कहते हैं'आर्यपुत्र ! बहुत मत बोलो, बहुत मत बोलो।'
10. (c) When some other persons talk among themselves, the fraud thinks that they were talking about him. After committing a misdeed when a treacherous person dies without self criticism (etc.) before death and reincarnates in the divine realm, he is not born among the gods endowed with great riddhi (opulence or special powers), dyuti (radiance or majesty ), anubhaava (powers of vikriya etc.), yash (fame ), bal फ (strength), sukha (bliss), status and long life span. He becomes a god but not a god endowed with great riddhi (opulence or special powers), dyuti 5 (radiance or majesty ), anubhaava (powers of vikriya etc.), yash (fame ), 5 5 bal (strength), sukha (bliss), status and long life
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span.
Again at the conclusion of his life span, birth and state as a god he descends from the divine realm and is born in this land of humans as a
स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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There, in the external and internal divine assemblies, he is neither 卐 respected nor recognized as master or invited to sit on a thrown meant for great persons. When he starts his speech four-five gods stand up 卐 without being asked and comment — “O god ! Do not utter much ! Do not speak much !”
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