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According to this verse the number of gods in the first kakshaas are 4 eighty four thousand, eighty thousand, seventy two thousand, seventy 卐 thousand, sixty thousand, fifty thousand, forty thousand, thirty thousand, twenty thousand, and ten thousand
The number of gods in the remaining kakshaas of all kings of gods $i progressively doubles in the following kakshaas till the seventh kakshaa. वचन-विकल्प-पद VACHAN-VIKALP-PAD
(SEGMENT OF CATEGORIES OF SPEECH) १२९. सत्तविहे वयणाविकप्पे पण्णत्ते, तं जहा-आलावे, अणालावे, उल्लावे, अणुल्लावे, संलावे, पलावे, विप्पलावे।
१२९. वचन-विकल्प (बोलने के भेद) सात प्रकार के हैं-(१) आलाप-कम बोलना, प्रिय बोलना। (२) अनालाप-अयोग्य भाषा बोलना। (३) उल्लाप-ध्वनि-विकृत करके या व्यंग्यपूर्वक बोलना। 5 (४) अनुल्लाप-कुत्सित ध्वनि के साथ या दुष्ट वचन बोलना। (५) संलाप-परस्पर बातचीत करना। (६) प्रलाप-निरर्थक बकवाद करना। (७) विप्रलाप-विरुद्ध वचन बोलना।
129. Vachan-vikalp (categories of speech) are of seven kinds(1) Aalaap—to speak less and speak sweetly, (2) Anaalaap—to speak improper language, (3) Ullaap-to distort voice or use satirical language, (4) Anullaap-to utter harshly or use evil language, (5) Samlaapdialogue, (6) Pralaap-blather and (7) Vipralaap-to speak against or negative speech. विनय-पद VINAYA-PAD (SEGMENT OF MODESTY)
१३०. सत्तविहे विणए पण्णत्ते, तं जहा-णाणविणए, सणविणए, चरित्तविणए, मणविणए, वइविणए, कायविणए, लोगोवयारविणए।
१३०. विनय सात प्रकार का है-(१) ज्ञान-विनय-ज्ञान और ज्ञानवान् की विनय व ज्ञानियों का , बहुमान करना। (२) दर्शन-विनय-सम्यग्दर्शन और सम्यग्दृष्टि का विनय करना। (३) चारित्र-विनयचारित्र और चारित्रवान् का विनय। (४) मनोविनय-मन की अशुभ प्रवृत्ति रोक कर, शुभ प्रवृत्ति में है लगाना। (५) वाग्-विनय-वचन की अशुभ प्रवृत्ति रोकना, शुभ प्रवृत्ति में लगाना। (६) काय-विनय-5 काय की अशुभ प्रवृत्ति रोक कर, शुभ प्रवृत्ति में लगाना। (७) लोकोपचार-विनय-लोक-व्यवहार के अनुकूल सबके साथ यथायोग्य विनय व्यवहार करना। ___130. Vinaya (modesty) is of seven kinds—(1) Jnana-vinaya-to show modesty and respect towards knowledge and those who have acquired knowledge, and also to honour scholarly sages. (2) Darshan-vinaya—to 15 show modesty and respect towards right perception/faith and those
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भाग-1
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स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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