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फ़ नजर-कैद रखने का आदेश देना। (५) मण्डलबन्ध-नियत क्षेत्र के बाहर न जाने का आदेश देना। ॥
(६) चारक-जेलखाने में बन्द रखने का आदेश देना। (७) छविच्छेद-हाथ-पैर आदि शरीर के अंग 卐 काटने का आदेश देना।
66. Dandaniti (penal code) is of seven kinds (1) Hakar-'Ha ! What have you done ? (2) Makar—'Do not do that again'. (3) Dhikkar—'Cursed
you are ! For doing this'. (4) Paribhash-to order for confinement for a ___limited Period. (5) Mandal bandh-to prohibit movement outside a
prescribed area. (6) Charak-order for imprisonment. (7) Chhavichchhedto order dismembering.
विवेचन-कुलकरों के पूर्व सभी मनुष्य अकर्मभूमि या भोगभूमि में जीवन-यापन करते थे। कल्पवृक्षों के सहारे जीवन चलता था। उस समय युगल-धर्म चल रहा था। किन्तु काल के प्रभाव से जब वृक्षों में भी फल-प्रदान की शक्ति घटने लगी और एक युगल दूसरे युगल की भूमि-सीमा में प्रवेश कर फलादि फ़ तोड़ने और खाने लगे, तब अपराधी व्यक्तियों को कुलकरों के सम्मुख लाया जाने लगा। उस समय लोग
इतने सरल और सीधे थे कि कुलकर द्वारा 'हा' (हाय, तुमने क्या किया?) इतना मात्र कह देने पर म आगे अपराध नहीं करते थे। इस प्रकार प्रथम ‘हाकार' दण्डनीति दूसरे कुलकर के समय तक चलती ॥
रही। जब अपराध पर अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ी तो तीसरे-चौथे कुलकर ने 'हा' के साथ 'मा' ॐ दण्डनीति प्रचलित की। जब और भी अपराधप्रवृत्ति बढ़ी तब पाँचवें कुलकर ने 'हा', मा' के साथ + धिक्' दण्डनीति प्रचलित की। इस प्रकार स्वल्प अपराध के लिए 'हा', उससे बड़े अपराध के लिए 'मा'
और उससे बड़े अपराध के लिए 'धिक्' दण्डनीति का प्रचार अन्तिम कुलकर के समय तक रहा।
जब कुलकर-युग समाप्त हो गया और कर्म भूमि का प्रारम्भ हुआ। ऋषभदेव इस काल के प्रथम 5 4 राजा हुए। भगवान ऋषभदेव के समय में जब अपराधप्रवृत्ति दिनों-दिन बढ़ने लगी, तब उन्होंने चौथी
परिभाष और पांचवीं मण्डलबन्ध दण्डनीति का उपयोग किया। अपराध-प्रवृत्तियों की उग्रता बढ़ने पर
भरत चक्रवर्ती ने अन्तिम चारक और छविच्छेद इन दो दण्डनीतियों का प्रयोग करने का विधान किया। ॐ (आवश्यक चूर्णि)
___आचार्य हरिभद्र आदि टीकाकारों का मत है कि भगवान ऋषभदेव ने तो कर्मभूमि की ही व्यवस्था ॐ की। अन्तिम चारों दण्डनीतियों का विधान भरत चक्रवर्ती ने किया है। इस विषय में विभिन्न आचार्यों के
विभिन्न अभिमत हैं। कुछ आचार्यों का मत है, चक्रवर्ती भरत के समय में मृत्युदण्ड का चलन भी हो गया ॐ था। (आवश्यकभाष्य गाथा १८)
Elaboration-Before the period of kulakars everyone lived in the akarmabhumi (period of no endeavour) or bhogabhumi (period of enjoyments). People subsisted on wish-fulfilling trees. But with passage of time the yield of these trees declined and the twins started trespassing areas of other twins to pluck fruits and other things. These criminals were
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स्थानांगसूत्र (२)
(312)
Sthaananga Sutra (2) |
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