________________
चंदजस चंदकंता, सुरूव पडिरूव चक्खुकंता य।
सिरिकंता मरुदेवी, कुलकरइत्थीण णामाई॥१॥ ६२. जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष में इसी, वर्तमान अवसर्पिणी में सात कुलकर हुए हैं(१) विमलवाहन, (२) चक्षुष्मान्, (३) यशस्वी, (४) अभिचन्द्र, (५) प्रसेनजित्, (६) मरुदेव, 卐 (७) नाभि। ६३. इन सात कुलकरों की साथ भार्याएँ थीं-(१) चन्द्रयशा, (२) चन्द्रकान्ता, (३) सुरूपा, के म (४) प्रतिरूपा, (५) चक्षुष्कान्ता, (६) श्रीकान्ता, (७) मरुदेवी।
62. In Jambu Dveep in Bharat-varsh there have been seven kulakars (clan founders or society makers) during the current Avasarpini (regressive cycle of time)-(1) Vimalavahan, (2) Chakshushman, (3) Yashasvi, (4) Abhichandra, (5) Prasenajit, (6) Marudev and (7) Nabhi. 63. These seven kulakars had seven wives-(1) Chandrayasha, (2) Chandrakanta, (3) Surupa, (4) Pratirupa, (5) Chakshushkanta, (6) Shrikanta and (7) Marudevi ६४. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति
मित्तवाहण सुभोमे य, सुप्पभे यसयंपभे।
दत्ते सुहुमे सुबंधू य, आगमिस्सेण होक्खती॥१॥ ६४. जम्बूद्वीप द्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर होंगे-(१) मित्रवाहन, + (२) सुभौम, (३) सुप्रभ, (४) स्वयम्प्रभ, (५) दत्त, (६) सूक्ष्म, (७) सुबन्धु।
64. In Jambu Dveep in Bharat-varsh there will be seven kulakars (clan founders or society makers) during the coming Utsarpini (progressive cycle of time)—(1) Mitravahan, (2) Subhaum, (3) Suprabh, (4) Svayamprabh, (5) Datt, (6) Sukshma and (7) Subandhu कल्पवृक्ष-पद KALPAVRIKSHA-PAD (SEGMENT OF WISH FULFILLING TREE) ६५. विमलवाहणे णं कुलकरे सत्तविधा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छिंसु, तं जहा
मतंगया य भिंगा, चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा।
मणियंगा य अणियणा, सत्तमगा कप्परुक्खा य॥१॥ ६५. विमलवाहन कुलकर के समय में सात प्रकार के कल्पवृक्ष उपभोग में आते थे-(१) मदांगक, म (२) भृग, (३) चित्रांग, (४) चित्ररस, (५) मण्यंग, (६) अनग्नक, (७) कल्पवृक्ष।
65. During the reign of Kulakar Vimalavahan seven kinds of kalpvriksha (wish fulfilling trees) were used for subsistence(1) Madaangak, (2) Bhring, (3) Chitrang, (4) Chitrarasa, (5) Manyang, (6) Anagnak and (7) Kalp-vriksha
B55555555555555555555555555555555555555555558
| स्थानांगसूत्र (२)
(310)
Sthaananga Sutra (2)
59555555555558
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org