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sam-there is a harmony with the set notes of musical instruments. (6) Nishvasitocchavasit sam-there is a harmony with inhalation and
fi exhalation. (7) Sanchar sam—– there is a harmony with the (speed of) 5 movement of fingers on musical instruments.
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Thus the rendering of a song has seven qualities in consonance with musical instruments. (13)
Conclusion-Thus there are seven svars (musical notes), three grums ( scales ), and twenty one murchchhanas (modulations ). Each svar (musical note) is sung with seven tones making a total of 49 tones. This concludes the description of the sphere of svars (musical notes).
(These details about seven musical notes are also available in Illustrated Anuyogadvar Sutra, part-1, pp. 400-417)
कायक्लेश- पद KAYAKLESH-PAD (SEGMENT OF MORTIFICATION OF BODY)
४९. सत्तविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा- ठाणातिए, उक्कुडुयासणिए, पडिमाठाई, वीरासणिए, सज्जिए, दंडायतिए, लगंडसाई ।
४९. कायक्लेश तप सात प्रकार का है - ( १ ) स्थानायतिक - खड़े होकर कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थिर होना । (२) उत्कुटुकासन - दोनों पैरों को भूमि पर टिकाकर उकडू बैठना। (३) प्रतिमास्थायी - भिक्षुप्रतिमा की विभिन्न मुद्राओं में स्थित रहना । ( ४ ) वीरासनिक- सिंहासन पर बैठने के समान दोनों घुटनों पर हाथ रखकर अवस्थित होना । (५) नैषयिक - पालथी मारकर स्थिर हो स्वाध्याय करने की मुद्रा में बैठना । (६) दण्डायतिक- डण्डे के समान सीधे चित्त लेटकर दोनों हाथों और पैरों को सटाकर अवस्थित रहना । (७) लगंडशायी - भूमि पर सीधे लेटकर लकुट के समान एड़ियाँ और शिर को भूमि से लगाकर पीठ आदि मध्यवर्ती भाग को ऊपर उठाये रखना ।
विवेचन - कायक्लेश बाह्यतप का पाँचवाँ भेद है। कायक्लेश का उद्देश्य, शरीर को क्लेश या कष्ट देना नहीं, किन्तु विविध आसनों द्वारा, उपसर्गों व कष्टों को सहन करते हुए शरीर की मूर्च्छा मिटाना और तितिक्षा भाव की वृद्धि करना है। प्रस्तुत सूत्र में वर्णित सातों भेद आसन से सम्बन्धित हैं । औपपातिक
49. Kayaklesh tap (austerities of mortification of body) is of seven kinds—(1) Sthanayatik - to stand straight and still, dissociating thoughts 5 from the body. (2) Utkatukasan—to sit squatting with feet straight on the ground. (3) Pratimasthaayi-to sit in various postures related to bhikshupratima (special austerities). (4) Virasanik-to sit in Virasan (posture resembling sitting on a chair without a chair). (5) Naishadyik - to 5 sit cross-legged. (6) Dandayatik-to sleep flat on the back with legs straight like a rod. (7) Lagandashayik-to adopt a posture where head and heal touch the floor and the back is raised.
सप्तम स्थान
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Seventh Sthaan
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