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卐 उन्माद-सूत्र UNMAAD-PAD (SEGMENT OF MADNESS) ॐ ४३. छहिं ठाणेहिं आया उम्मायं पाउणेज्जा, तं जहा-अरहंताणं अवण्णं वदमाणे,
'अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरिय-उवज्झायाणं अवण्णं वदमाणे, चाउव्वण्णस्स म संघस्स अवण्णं वदमाणे, जक्खावेसेण चेव, मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स उदएणं।
४३. छह कारणों से आत्मा उन्माद (मिथ्यात्व) को प्राप्त होता है, जैसे-(१) अर्हन्तों का, + (२) अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म का, (३) आचार्य और उपाध्याय का, (४) चतुर्वर्ण (चतुर्विध) संघ का अवर्णवाद E करता हुआ, (५) यक्ष आदि के शरीर में प्रविष्ट हो जाने पर, (६) मोहनीय कर्म के उदय से। i 43. A soul gets mad or unrighteous for six reasons--by slandering and
criticizing (1) Arhants, (2) religion propagated by Arhats, (3) acharya and upadhyaya, and, (4) Chaturvarna (Chaturvidh) Sangh (four limbed religious organization), (5) by being possessed by evil spirits including
Yaksh and (6) due to fruition of mohaniya karma (deluding karma). 5. विवेचन-उन्माद का अर्थ है, विवेक भ्रष्ट हो जाना, पागल हो जाना या मिथ्यात्व के उदय से सत्य को + असत्य कहकर अनर्गल प्रलाप करना। मिथ्यात्व भाव उन्माद है, प्रथम चार भेद भाव उन्माद के हैं। शेष दो भेद द्रव्य उन्माद के हैं।
Elaboration-Unmaad means to lose rationality and go mad. It also includes to blather under influence of unrighteousness calling true as false. Unrighteousness itself is madness. The first four statements are called bhaava unmaad and the last two dravya unmaad.
प्रमाद-पद PRAMAD-PAD (SEGMENT OF STUPOR)
४४. छब्बहे पमाए पण्णत्ते, तं जहा-मज्जपमाए, णिद्दपमाए, विसयपमाए, कसायपमाए, जूतपमाए, पडिलेहणापमाए।
४४. प्रमाद छह प्रकार का है-(१) मद्य-प्रमाद, (२) निद्रा-प्रमाद, (३) विषय-प्रमाद, (४) कषाय-प्रमाद, (५) द्यूत-प्रमाद, (६) प्रतिलेखना-प्रमाद। प्रमाद ही कर्म बन्धन का हेतु है।
44. Pramad (stupor) is of six kinds-(1) madya-pramad (stupor of alcohol), (2) nidra-pramad (stupor of sleep), (3) vishaya-pramad (stupor of carnal pleasures), (4) kashaya-pramad (stupor of passions), (5) dyootpramad (stupor of gambling) and (6) pratilekhana-pramad (stupor of inspection).
विवेचन-उन्माद का सहचारी प्रमाद है। कर्त्तव्य के प्रति उपेक्षा, लापरवाही, प्राप्त साधनों का दुरुपयोग तथा सदुपयोग करने में उत्साह हीनता प्रमाद है।
| स्थानांगसूत्र (२)
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