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३९. छहों दिशाओं में जीवों की आगति, अवक्रान्ति, आहार, वृद्धि, निवृद्धि, विकरण, गतिपर्याय, + समुद्घात, कालसंयोग, दर्शनाभिगम, ज्ञानाभिगम जीवाभिगम और अजीवाभिगम होता है-(१) पूर्वदिशा ॥
में, (२) पश्चिमदिशा में, (३) दक्षिणदिशा में, (४) उत्तरदिशा में, (५) ऊर्ध्वदिशा में और ॐ (६) अधोदिशा में। ४०. इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की और मनुष्यों की गति-आगति आदि के छहों दिशा में होती है।
37. Directions are six-(1) Praachi (east), (2) Pratichi (west), (3) Dakshin (south), (4) Uttar (north), (5) Urdhva (zenith) and (6) Adho '45 (nadir). 38. Jivas (souls or living beings) have gati (movement or reincarnation) in all the six directions—(1) in Praachi (east), (2) in Pratichi (west), (3) in Dakshin (south), (4) in Uttar (north), (5) in Urdhva (zenith) and (6) in Adho (nadir). 39. All beings have aagati, avakranti, ahar, vriddhi, nivriddhi, vikaran, gati-paryaya, samudghat, kaalsamyoga, darshanabhigam, jnanabhigam, jivabhigam and ajivabhigam in all the six directions—(1) in Praachi (east), (2) in Pratichi (west), (3) in Dakshin (south), (4) in Uttar (north), (5) in Urdhva (zenith) and (6) in Adho (nadir). 40. In the same way five sensed animals and human beings also have gati, aagati etc. in all the six directions.
विवेचन-सूत्रोक्त १३ पदों का अर्थ इस प्रकार है-(१) आगति-पूर्वभव से वर्तमान भव में आना। + (२) अवक्रान्ति-उत्पत्तिस्थान में उत्पन्न होना। (३) आहार-प्रथम समय में शरीर के योग्य पुद्गलों का + ग्रहण करना। (४) वृद्धि-उत्पत्ति के पश्चात् शरीर का बढ़ना। (५) हानि-शरीर के पुद्गलों का ह्रास। म (६) विक्रिया-शरीर के छोटे-बड़े विविध आकारों का निर्माण। (७) गति-पर्याय-गमन करना। 卐 (८) समुद्घात-वर्तमान शरीर को बिना त्यागे कुछ आत्म-प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना।
(९) काल-संयोग-काल-विभाग। (१०) दर्शनाभिगम-अवधिदर्शन आदि के द्वारा वस्तु का सामान्य ॐ अवलोकन। (११) ज्ञानाभिगम-अवधिज्ञान आदि के द्वारा वस्तु का परिज्ञान। (१२) जीवाभिगमम अवधिज्ञान आदि के द्वारा जीवों का परिज्ञान। (१३) अजीवाभिगम-अवधिज्ञान आदि के द्वारा पुद्गलों 5 का परिज्ञान। उपर्युक्त गति-आगति आदि सभी कार्य छहों दिशाओं से सम्पन्न होते हैं।
Elaboration—The meanings of thirteen terms, besides gati, are as follows-(1) Aagati-incarnation or movement from past birth to this birth. (2) Avakranti-to get born at place of birth. (3) Ahar-to acquire body-forming matter particles during the first Samaya of birth. (4) Vriddhi-post-birth growth of body. (5) Nivriddhi-loss of matter particles of body. (6) Vikaran-forming of various small or large parts of the body. (7) Gati-paryaya-to move. (8) Samudghat-to move some soulspace-points outside the body without completely abandoning the present body. (9) Kaal-samyoga-to divide time in sections.
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| स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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