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5 अनात्मवान्- आत्मवान्- पद ANATMAVAN ATMAVAN-PAD
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३२. छट्टाणा अणत्तवओ अहिताए असुभाए अखमाए अणीसेसाए अणाणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा - परियार, परियाले, सुते, तवे, लाभे, पूयासक्कारे। ३३. छट्टाणा अत्तवतो हिताए ( सुभाए खमाए णीसेसाए) आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा- परियाए, परियाले, (सुते, तवे, लाभे) पूयासक्कारे।
(SEGMENT OF NON-SPIRITUALIST AND SPIRITUALIST)
३२. अनात्मवान् के लिए छह स्थान अहित, अशुभ, अक्षम, अनिःश्रेयस् अनानुगामिकता (आगामी भव के लिए अशुभानुबन्ध वाले) के लिए होते हैं - ( १ ) पर्याय - अवस्था या दीक्षा में बड़ा होना, (२) परिवार, (३) श्रुत, (४) तप, (५) लाभ, (६) पूजा - सत्कार | ३३. आत्मवान् के लिए छह स्थान फ्र हित, शुभ, क्षम, निःश्रेयस् और आनुगामिकता ( शुभानुबन्ध) के लिए होते हैं - ( १ ) पर्याय, (२) परिवार, (३) श्रुत, (४) तप, (५) लाभ, (६) पूजा - सत्कार |
विवेचन- जिसको अपनी आत्मा का अनुभव हो गया है और जिसका अहंकार-ममकार दूर हो गया वह आत्मवान् है । इसके विपरीत अनात्मवान् है ।
32. For an anatmavan (non-spiritualist) six things are ahitkar (harmful), ashubh (bad), aksham (improper), anihshreyash (disadvantageous) and ananugamik (cause of demeritorious bondage for future life)—(1) paryaya (to be senior in initiation or age), (2) parivar 5 (family), (3) shrut ( scriptures), (4) tap ( austerities), (5) laabh (gains) and फ्र (6) puja-satkar (worship and honour). 33. For an atmavan (spiritualist) six things are hitakar (beneficial), shubh (good), ksham ( proper ), nihshreyash (advantageous) and ananugamik (cause of liberation in future life)- (1) paryaya (to be senior in initiation or age), (2) parivar फ्र ( family), (3) shrut ( scriptures), (4) tap ( austerities), (5) laabh (gains) and 5 (6) puja-satkar (worship and honour).
अनात्मवान् व्यक्ति के लिए दीक्षा - पर्याय या अधिक अवस्था, शिष्य या कुटुम्ब परिवार, श्रुत, तप और पूजा - सत्कार की प्राप्ति से लोकैषणा, ज्ञान से अहंकार, तप से क्रोध, लाभ से लोभ या ममत्व उत्तरोत्तर बढ़ता है, उससे वह दूसरों को हीन, अपने को महान् समझने लगता है। इस कारण से सब उत्तम योग भी उसके लिए पतन के कारण हो जाते हैं। किन्तु आत्मवान् के लिए उक्त छहों स्थान उत्थान और आत्म-विकास के कारण होते हैं, क्योंकि ज्यों-त्यों उसमें तप श्रुत आदि की वृद्धि होती है, त्योंत्यों वह अधिक विनम्र एवं उदार होता जाता है।
Elaboration-One who has had spiritual experience of self realization and who is devoid of conceit and ego (fondness for the self) is called atmavan. Opposite of this is anatmavan.
स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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