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(female ascetic) for six reasons - ( 1 ) when she is vikshipt-chitt (crazy), ; ( 2 ) when she is dript-chitt ( euphoric ), ( 3 ) when she is yakshavisht (possessed by spirits ), ( 4 ) when she is unmaad prapt (mentally deranged due to excitement), (5) when she is upasarg prapt (tormented by affliction) and ( 6 ) when she is sadhikarana (excited due to strife).
साधर्मिक - अन्तकर्म पद SADHARMIK ANTKARMA-PAD
(SEGMENT OF LAST RITES OF CO-RELIGIONIST)
३. छहिं ठाणेंहि णिग्गंथा णिग्गंधीओ य साहम्मियं कालगतं समायरमाणा णाइक्कमंति, तं जहा - अंतोर्हितो वा बाहिं णीणेमाणा, बाहीहिंतो वा णिब्बाहिं णीणेमाणा, उवेहेमाणा वा, उवासमाणा वा, अणुण्णवेमाणा वा, तुसिणीए वा संपव्ययमाणा ।
३. छह कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थी कालप्राप्त हुए अपने साधर्मिक का अन्त्यकर्म करते हुए भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं - (१) उसे उपाश्रय से बाहर लाते हुए । (२) बस्ती से बाहर लाते हुए। (३) उपेक्षा करते या उदासीनता वरतते हुए । ( ४ ) शव के समीप रहकर रात्रि - जागरण करते हुए । (५) मृत साधक के स्वजन या गृहस्थों को सूचित करते हुए । (६) उसे एकान्त में विसर्जित करने के लिए मौन भाव से जाते हुए ।
3. Shraman Nirgranth and Nirgranthi (male and female ascetics) do not defy the word of Bhagavan if they perform last rites of a coreligionist for six reasons - ( 1 ) bringing him out of the upashraya (place of stay), (2) taking him out of the inhabited area, ( 3 ) showing unconcern or apathy to him, (4) keeping awake near the dead body during the 卐 night, (5) informing the relatives of the deceased or other householders and (6) proceeding silently to place the body at some isolated spot.
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विवेचन - प्राचीन काल में जब साधु और साध्वियों के संघ विशाल होते थे और वे प्रायः नगर के बाहर रहते थे, उस समय किसी स्थिति में किसी साधु या साध्वी के कालगत होने पर उसकी अन्तक्रिया 5 उन्हें करनी पड़ती थी। उसी का निर्देश प्रस्तुत सूत्र में किया है।
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प्रथम दो कारणों से ज्ञात होता है कि जहाँ साधु या साध्वी कालगत हो, उस स्थान से बाहर 5 निकालना और फिर उसे निर्दोष स्थण्डिल पर विसर्जित करने के लिए बस्ती से बाहर ले जाने का भी काम उनके साम्भोगिक साधु या साध्वी स्वयं ही करते थे ।
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टीकाकार ने 'उपेक्षा' नामक तीसरे कारण के दो भेद किये हैं-व्यापारोपेक्षा और अव्यापारोपेक्षा । 5 व्यापारोपेक्षा अर्थात्-मृतक के अंगच्छेदन - बंधनादि क्रियाएँ करना । बृहत्कल्प भाष्य आदि से ज्ञात होता है कि यदि कोई साधक रात्रि में कालगत हो जावे तो उसमें कोई भूत-प्रेत आदि प्रवेश न कर जावे, इस 5 आशंका से उसकी अंगुली के मध्य पर्व का भाग छेद दिया जाता था । तथा हाथ-पैरों के अंगूठों को रस्सी से बाँध दिया जाता था । अव्यापारोपेक्षा का अर्थ है - मृतक के सम्बन्धियों द्वारा सत्कार-संस्कार में
षष्ठ स्थान
Sixth Sthaan
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