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सूत्रवाचना- पद SUTRAVACHANA-PAD (SEGMENT OF RECITATION OF SUTRAS)
२२३. पंचहिं ठाणेहिं सुत्तं वाएज्जा, तं जहा - संगहट्टयाए, उवग्गहट्टयाए, णिज्जरट्टयाए, सुत्ते
वा मे पज्जवयाते भविस्सति, सुत्तस्स वा अवोच्छित्तिणयट्टयाए ।
२२३. पाँच कारणों (प्रयोजनों) से सूत्र की वाचना देनी चाहिए - ( १ ) संग्रह के लिए - शिष्यों को
श्रुत - सम्पन्न (विद्वान) बनाने के लिए। (२) उपग्रह के लिए दूसरों को धर्म बोध देकर परोपकार करने
की योग्यता प्राप्त कराने के लिए। (३) निर्जरा के लिए। (४) वाचना देने से मेरा श्रुतज्ञान पुष्ट और विस्तृत होगा, इस कारण से । (५) श्रुत के पठन-पाठन की परम्परा अविच्छिन्न रखने के लिए।
223. Sutras should be recited (vachana) for five reasonsSamgraha-to make disciples scholars of Shrut (the Sutras).
(1)
(2) Upagraha-to impart ability of benefitting people by teaching them religion. (3) Nirjara-for shedding karmas. (4) for the purposeBelieving that my knowledge of Shrut will enhance and widen. (5) for keeping the tradition of Shrut-jnana intact.
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२२४. पंचहिं ठाणेहिं सुत्तं सिक्खेज्जा, तं जहा - णाणट्टयाए, दंसणट्टयाए, चरित्तट्टयाए, 5
वुग्गहविमोयणट्टयाए, अहत्थे वा भावे जाणिस्सामीतिकट्टु ।
२२४. पाँच कारणों से सूत्र सीखना चाहिए। ( १ ) ज्ञानार्थ- नये - नये तत्त्वों के परिज्ञान के लिए।
(२) दर्शनार्थ - सम्यक्त्व की उत्तरोत्तर विशुद्धि एवं संपोषण के लिए। (३) चारित्रार्थ - चारित्र की अधिक निर्मलता के लिए । (४) व्युद्ग्रहविमोचनार्थ - दूसरों का दुराग्रह छुड़ाने के लिए। (५) यथार्थ भाव ज्ञानार्थ- फ्र तत्त्व के यथार्थ परिज्ञान के लिए।
कल्प- पद KALP-PAD (SEGMENT OF DIVINE REALMS)
224. Sutras should be learned for five reasons-(1) Jnanarth-to learn about new facts and realities. (2) Darshanarth-for gradual sublimation and nurturing of righteousness. (3) Chaaritrarth-for further purification 5 of conduct. (4) Vyudgrahavimochanarth — for removing dogmas of others. (5) Yatharth-bhaava jnanarth-for true knowledge of fundamentals.
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२२५. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा - किण्हा, [णीला, 5 लोहिता, हालिद्दा ], सुक्किल्ला । २२६. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचजोयणसयाई उड उच्चत्तेणं पण्णत्ता। २२७. बंभलोग - लंतएसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं 5 पंचरयणी उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।
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२२७.
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२२५. सौधर्म और ईशानकल्प के विमान पाँच वर्ण के हैं - (१) कृष्ण, (२) नील, (३) लोहित, (४) हारिद्र, (५) शुक्ल । २२६. सौधर्म और ईशानकल्प के विमान पाँच सौ योजन ऊँचे हैं। ब्रह्मलोक और लान्तककल्प के देवों के भवधारणीय शरीर की उत्कृष्ट ऊँचाई पाँच रत्नि (हाथ) है। 5
Sthaananga Sutra (2)
स्थानांगसूत्र (२)
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