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173. Jivastikaya is an entity (dravya) that is varna rahit (devoid of appearance or colour), gandh rahit (devoid of smell), rasa rahit (devoid of 卐 taste), sparsh rahit (devoid of touch), arupi (formless), ajiva (lifeless), 41 shashvat (eternal), avasthit (indestructible) and integral part of lok
(occupied space or universe). Briefly speaking, it has five attributes in
context of-(1) dravya (entity), (2) kshetra (space or area), (3) kaal (time), si (4) bhaava (state) and (5) guna (properties).
In context of—(1) Dravya (entity)-Jivastikaya is infinite entities. (2) Kshetra (space or area)—it pervades the whole lok. In other words, like lok it has innumerable space-points. (3) Kaal (time)-it is not that it never existed, it is not that it does not exist, it is not that it will never exist. It existed in the past, it exists in the present and it will continue to exist in the future. Therefore it is dhruva (constant), niyat (fixed), shashvat (eternal), akshaya (imperishable), avyaya (non-expendable), avasthit (steady), and nitya (perpetual). (4) Bhaava (state)-it is devoid
of colour, smell, taste and touch. (5) Guna (properties)—it has the 41 \i property of upayog (intent or sentience). 5 पुद्गलास्तिकाय PUDGALASTIKAYAS .
१७४. पोग्गलत्थिकाए पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे रूवी अजीवे सासते अवद्विते लोगदव्ये। से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। + दवओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दव्वाइं। खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते। कालओ ण कयाइ णासी,
ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति-भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते . 9 अक्खए अब्बए अवट्टिते णिच्चे। भावओ वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते। गुणओ गहणगुणे।
१७४. पुद्गलास्तिकाय पंच वर्ण, पंच रस, दो गन्ध, आठ स्पर्श वाला, रूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का एक अंशभूत द्रव्य है। संक्षेप से वह-(१) द्रव्य, (२) क्षेत्र, (३) काल, ॐ (४) भाव और (५) गुण की अपेक्षा पाँच प्रकार का है
(१) द्रव्य की अपेक्षा-अनन्त द्रव्य हैं। (२) क्षेत्र की अपेक्षा-लोकप्रमाण है, अर्थात् लोक में ही ॐ पुद्गल रहता है। (३) काल की अपेक्षा कभी नहीं था, ऐसा नहीं है, कभी नहीं है, ऐसा भी नहीं है, कभी + नहीं होगा, ऐसा भी नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमानकाल में है और भविष्यकाल में रहेगा। अतः 5
वह ध्रुव, निचित, शाश्वत, अक्षत, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। (४) भाव की अपेक्षा वर्णवान्, ॥ गन्धमान्, रसवान् और स्पर्शवान् है। (५) गुण की अपेक्षा ग्रहण गुणवाला है, अर्थात् औदारिक आदि के
शरीर रूप से और इन्द्रियों के द्वारा भी वह ग्रहण किया जाता है। अथवा पूरण, गलन-मिलने-बिछुड़ने ॐ का स्वभाव वाला है।
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पंचम स्थान : तृतीय उद्देशक
(183)
Fifth Sthaan : Third Lesson
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