________________
पंचम स्थान
: ת ת ת ת ת ת ת ת ת
נ ת ת ת ת ת ת ת ת ת
। प्राथमिक परिचय
इस स्थान में पाँच की संख्या से सम्बन्धित विषयों का संकलन है। इस वर्गीकरण में सैद्धान्तिक, है तात्त्विक, आचार प्रधान, दार्शनिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, ज्योतिष्क और योग आदि अनेक विषयों
से सम्बन्धित वर्णन है। सभी विषय ज्ञानवर्धक होने के साथ ही रोचक तथा व्यावहारिक जीवन में में उपयोगी भी हैं। जैसे
(१) सैद्धान्तिक सन्दर्भ में-इन्द्रियों के विषय, शरीरों का वर्णन, तीर्थभेद, आर्जवस्थान, देवों की । स्थिति, क्रियाओं का वर्णन, शरीरावगाहनादि विषयों का वर्णन।
(२) चारित्र-सम्बन्धी चर्चा में पाँच अणुव्रत-महाव्रत, पाँच प्रतिमा, गोचरी के भेद, वर्षावास, राजान्तःपुरप्रवेश, निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी का एकत्र निवास, पाँचप्रकार की परिज्ञाएँ, पाँच प्रकार के म निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी-अवलम्बनादि। । (३) तात्त्विक चर्चा में-कर्मनिर्जरा के कारण, आस्रव-संवर के द्वार, पाँच प्रकार के दण्ड, । संवर-असंवर, संयम-असंयम, बन्ध आदि पदों के द्वारा अनेक विषयों को संकलन। म (४) भौगोलिक चर्चा में-महानदी, वक्षस्कार-पर्वत, महाद्रह, जम्बूद्वीपादि अढ़ाईद्वीप, महानरक, * महाविमान आदि। __ऐतिहासिक चर्चा में राजचिह्न, पंचकल्याणक, ऋद्धिमान् पुरुष, कुमारावस्था में प्रव्रजित तीर्थंकर
आदि की चर्चा। है इनके अतिरिक्त गेहूँ, चने आदि धान्यों की उत्पादनशक्ति, स्त्री-पुरुषों की प्रवीचारणा, देवों की सेना * के प्रकार और उसके सेनापतियों के नाम, गर्भ-धारण के प्रकार, गर्भ के अयोग्य स्त्रियों का निरूपण, । सुप्त-जागृत संयमी-असंयमी अन्तर और सुलभ-दुर्लभ बोधि का विवेचन भी पठनीय तथा मननीय है। के इस स्थान के तीन उद्देशक हैं।
विषय की ज्ञानवर्धकता और उपयोगिता की दृष्टि से एवं वर्णन की सरस शैली का एक । उदाहरण देखें। पाँच प्रकार का शौच हैं-(१) मिट्टी-(बर्तन आदि की शुद्धि के लिए), (२) जल-(वस्त्र, पात्र आदि
की शुद्धि के लिए), (३) अग्नि-(धातु आदि की शुद्धि के लिए), (४) मंत्र-(मन एवं वायुमण्डल की । शुद्धि के लिए), (५) ब्रह्मचर्य-(आत्मा की शुद्धि के लिए)। (उद्देशक ३, सूत्र १९४) इसी प्रकार अन्य विषय भी ज्ञानवर्धक हैं।
ת ת ת ת ת ת
נ ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת
| पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक
(87)
Fifth Sthaan: First Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org