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225. There is one category of Anyaling Siddhas. 226. There is one category of Grihiling Siddhas.] 227. There is one category of Ek Siddhas. 228. There is one category of Anek Siddhas. 229. There is one category of Apratham-samaya Siddhas (those who have become Siddhas in the second Samaya from the beginning of the cycle of time). In the same way there is one category each of third-Samaya Siddhas, fourth-Samaya Siddhas and so on up to infinite-Samaya Siddhas.'
विवेचन-एक स्थानक के ५२वें सत्र में 'सिद्ध एक है' ऐसा कहा गया है और उक्त सूत्रों में उनके पन्द्रह प्रकार कहे गये हैं, इसे परस्पर विरोधी कथन नहीं समझना चाहिए। क्योंकि सम्पूर्ण आत्मिक विकास की दृष्टि से सिद्धों में कोई भेद नहीं है। इस अभेद की दृष्टि से सिद्ध एक है। सिद्ध होने से पूर्व मनुष्य भव के नाना सम्बन्धों, स्थितियों व अवस्थाओं के आधार पर यहाँ सिद्धों के १५ भेद बताये गये हैं। इनका स्वरूप इस प्रकार है(१) तीर्थसिद्ध-जो तीर्थ की स्थापना के पश्चात् तीर्थ में दीक्षित होकर सिद्ध होते हैं, जैसे-गणधर
आदि। (२) अतीर्थसिद्ध-जो तीर्थ की स्थापना के पहले सिद्ध हो जाते हैं, जैसे-मरुदेवी माता। (३) तीर्थंकरसिद्ध-जो तीर्थंकर होकर के सिद्ध होते हैं, जैसे-ऋषभदेव आदि। (४) अतीर्थंकरसिद्ध-जो सामान्यकेवली के रूप में सिद्ध होते हैं, जैसे गौतम आदि। (५) स्वयंबुद्धसिद्ध-जो स्वयंबोधि प्राप्त कर सिद्ध होते हैं, जैसे-महावीर स्वामी। (६) प्रत्येकबुद्धसिद्ध-जो किसी बाह्य निमित्त से प्रबुद्ध होकर सिद्ध होते हैं, जैसे-नमिराज ऋषि
आदि। (७) बुद्धबोधितसिद्ध-जो आचार्य आदि के द्वारा बोधि प्राप्त कर सिद्ध होते हैं, जैसे-जम्बूस्वामी
आदि। (८) स्त्रीलिंगसिद्ध-जो स्त्रीलिंग से सिद्ध होते हैं, जैसे-मरुदेवी माता, मृगावती आदि। (९) पुरुषलिंगसिद्ध-जो पुरुष लिंग से सिद्ध होते हैं, जैसे-भरत आदि। (१०) नपुंसकलिंगसिद्ध-जो कृत्रिम नपुंसकलिंग से सिद्ध होते हैं, जैसे-गांगेय। (११) स्वलिंगसिद्ध-जो निर्ग्रन्थ वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे-सुधर्मा। (१२) अन्यलिंगसिद्ध-जो निर्ग्रन्थ वेष के अतिरिक्त अन्य वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे-वल्कलचीरी। (१३) गृहिलिंगसिद्ध-जो गृहस्थ के वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे-मरुदेवी। (१४) एकसिद्ध-जो एक समय में एक ही सिद्ध होते हैं, जैसे–महावीर आदि। (१५) अनेकसिद्ध-जो एक समय में दो से लेकर उत्कृष्टतः एक सौ आठ तक एक साथ सिद्ध होते
हैं, जैसे-ऋषभदेव।
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प्रथम स्थान
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First Sthaan
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