________________
55555555555555555555555555555555555558
i
beings). 188. There is one category of krishnapakshik naarakiya jivas (dark-sided infernal beings). 189. There is one category of shuklapakshik naarakiya jivas (dark-sided infernal beings). 190. In the same way there is one category each of krishnapakshik and shuklapakshik jivas (dark
sided and bright-sided beings) of all the remaining aforesaid categories. ॐ विवेचन-भवसिद्धिक जीवों में मोक्ष जाने की योग्यता तो होती है, परन्तु ऐसा नहीं है कि सभी
भवसिद्धिक जीव मोक्ष को प्राप्त करेंगे। इस दृष्टि को स्पष्ट करने के लिए शुक्लपक्ष व कृष्णपक्ष का वर्गीकरण ।
किया गया है। जिन भवसिद्धिक जीवों में मुक्त होने की कालावधि निश्चित हो गई है वे शुक्लपाक्षिक 卐 कहलाते हैं तथा जिनकी मोक्ष गमन की कोई सीमा निश्चित नहीं है उनका भविष्य अन्धकारमय होने से
उन्हें कृष्णपाक्षिक कहा जाता है। अर्थात् जिन जीवों का अपार्ध-कुछ कम अर्ध पुद्गल परावर्तन काल ॐ संसार में परिभ्रमण शेष रहता है, वे शुक्लपाक्षिक हैं, इससे अधिक काल सीमा वाले कृष्णपाक्षिक हैं। 卐 [पुद्गल परावर्तन के सम्बन्ध में विशेष वर्णन अनुयोगद्वार, भाग २, परिशिष्ट १, पृष्ठ ४८१ पर देखें]
Elaboration The bhavasiddhik beings have the ability to get liberated but all such beings will not get liberated. To remove this \ ambiguity such beings have been further classified into shuklapakshik
and krishnapakshik beings. The beings with a defined period after which they will certainly get liberated are called shuklapakshik (bright-sided).
As the future of those who have no such defined period is dark, they are y called krishnapakshik (dark-sided). In other words, the beings with a 4 span of cycles of rebirth slightly less than ardhapudgala paravartan
kaal are called shuklapakshik. Beings with the said span of more than this period are krishnapakshik. (for detailed description about pudgal paravartan refer to Illustrated Anuyogadvar Sutra, part-2, appendix 1, p. 481). लेश्या-पद LESHYA-PAD (SEGMENT OF COMPLEXION OF SOUL)
१९१. एगा कण्हलेस्साणं वग्गणा। १९२. एगा णीललेसाणं वग्गणा। एवं जाव। १९३. [एगा काउलेसाणं वग्गणा। १९४. एगा तेउलेसाणं वग्गणा। १९५. एगा पम्हलेसाणं वग्गणा।] १९६. एगा सुक्कलेसाणं वग्गणा।
१९७. एगा कण्हलेसाणं णेरइयाणं वग्गणा। १९८. [एगा णीललेसाणं णेरइयाणं वग्गणा जाव।] १९९. एगा काउलेसाणं णेरइयाणं वग्गणा। म २००. एवं-जस्स जइ लेसाओ-भवणवइ-वाणमंतर-पुढवि-आउ-वणस्सइकाइयाणं
च चत्तारि लेसाओ, तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिंदियाणं तिण्णि लेसाओ, 5 पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं छल्लेस्साओ, जोतिसियाणं एगा तेउलेसा, वेमाणियाणं तिण्णि
उवरिमलेसाओ।
स्थानांगसूत्र (१)
(28)
Sthaananga Sutra (1)
855555))))))))))
))
))
)
)
))
)))
)))
)))
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org