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९. सचित्र निरयावलिका एवं विपाक सूत्र
मूल्य ६००/
निरयावलिका में पाँच उपांग हैं। भगवान महावीर के परमभक्त राजा कूणिक के जन्म आदि का वर्णन
तथा वैशाली गणतंत्राध्यक्ष चेटक के साथ हुए महाशिलाकंटक युद्ध का रोमांचक सचित्र चित्रण तथा भगवान अरिष्टनेमि एवं भगवान पार्श्वनाथ के शासन में दीक्षित अनेक श्रमण-श्रमणियों का चरित्र इनमें है।
११. सचित्र औपपातिक सूत्र
मूल्य ६००/
यह प्रथम उपांग हैं। इसमें राजा कूणिक का भगवान महावीर की वन्दनार्थ प्रस्थान, दर्शन - यात्रा तथा भगवान की धर्मदेशना, धर्म प्ररूपणा आदि विषयों का बहुत ही विस्तृत लालित्य युक्त वर्णन है। इसी में अम्बड परिव्राजक आदि अनेक परिव्राजकों की तपः साधना का वर्णन भी है।
१०. सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र
मूल्य ५००/
आठवें अंग अन्तकृद्दशासूत्र में मोक्षगामी ९० महान आत्म साधक श्रमण-श्रमणियों के तपोमय साधना 5 जीवन का प्रेरक वर्णन है । यह सूत्र पर्युषण में विशेष रूप में पठनीय है। विविध चित्र व तपों के चित्रों से समझने में सरल सुबोध है ।
१२. सचित्र रायपसेणिय सूत्र
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विपाकसूत्र में अशुभ कर्मों के अत्यन्त कटु फल का वर्णन है, जिसे सुनते ही हृदय द्रवित हो जाता है, तथा सुख विपाक में दान- तप आदि शुभ कर्मों के महान सुखदायी पुण्य फलों का मुँह बोलता वर्णन है। 5 भाव पूर्ण रोचक कलापूर्ण चित्रों के साथ ।
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१३. सचित्र कल्पसूत्र
मूल्य ५००/
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यह द्वितीय उपांग है। धर्मद्वेषी प्रदेशी राजा को धर्मबोध देकर परम धार्मिक बनाने वाले महान ज्ञानी फ्र आचार्य केशीकुमार श्रमण के साथ आत्मा, परलोक, पुनर्जन्म आदि विषयों पर हुई तर्क युक्त अध्यात्म 5 चर्चा प्रत्येक जिज्ञासु के लिए पठनीय ज्ञानवर्द्धक है। आत्मा और शरीर की भिन्नता समझाने वाले उदाहरणों के चित्र भी बोधप्रद हैं।
मूल्य ५००/
कल्पसूत्र का पठन, पर्युषण में विशेष रूप में होता है। इसमें २४ तीर्थंकरों का जीवन चरित्र है। साथ ही भगवान महावीर का विस्तृत जीवन चरित्र, श्रमण समाचारी तथा स्थविरावली का वर्णन है । २४ तीर्थंकरों के जीवन से सम्बन्धित सुरम्य चित्रों के कारण सभी के लिए आकर्षक उपयोगी है। इस प्रकार १७ जिल्दों में १८ आगम तथा कल्पसूत्र प्रकाशित हो चुके हैं। प्राकृत अथवा हिन्दी का साधारण ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी अंग्रेजी माध्यम से जैन शास्त्रों का भाव, उस समय की आचार-विचार प्रणाली आदि को अच्छी प्रकार से समझ सकते हैं। अंग्रेजी शब्द कोष भी दिया गया है। पुस्तकालयों, ज्ञान भण्डारों तथा संत-सतियों, स्वाध्यायियों के लिए विशेष रूप से संग्रह करने योग्य आगमों का यह प्रकाशन कुछ समय पश्चात् दुर्लभ हो सकता है।
इस आगम माला के प्रकाशन में परम श्रद्धेय उत्तरभारतीय प्रवर्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज की अत्यन्त बलवती प्रेरणा रही है। उनके शिष्य रत्न जैन शासन दिवाकर आगम ज्ञाता उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्री अमर मुनिजी म. द्वारा सम्पादित है, इनके सह सम्पादक हैं प्रसिद्ध विद्वान श्रीचन्द सुराना। अंग्रेजी अनुवाद कर्ता हैं, श्री सुरेन्द्र बोथरा तथा सुश्रावक श्री राजकुमार जी जैन ।
परिशिष्ट
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Appendix
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