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$i man is jaya sampanna and not jati sampanna. (3) Some man is both jati
sampanna and jaya sampanna. (4) Some man is neither jati sampanna nor jaya sampanna. कुल-पद KULA-PAD (SEGMENT OF BEAUTY) __४७४. एवं कुलसंपण्णेण य बलसंपण्णेण य, कुलसंपण्णेण य रूवसंपण्णेण य, कुलसंपण्णेण य
जयसंपण्णेण य, एवं बलसंपण्णेण य रूवसंपण्णेण य, बलसंपण्णेण जयसंपण्णेण ४ सव्वस्थ ॐ पुरिसजाया पडिवक्खो [चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे,
बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो ॐ बलसंपण्णे ] # एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे मणाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे। ॐ ४७५. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे
णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे।। ___ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे
णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। के ४७६. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे ॐणाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो जयसंपण्णे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे + णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो जयसंपण्णे।
४७४. इसी प्रकार कुलसम्पन्न और बलसम्पन्न, कुलसम्पन्न और रूपसम्पन्न, कुलसम्पन्न और जयसम्पन्न, बलसम्पन्न और रूपसम्पन्न, बलसम्पन्न और जयसम्पन्न-इनके साथ चतुर्भंगी समझनी चाहिए। सभी जगह घोड़े के प्रतिपक्ष की तुलना पुरुष से करें। जैसे-घोड़े चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई घोड़ा कुलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। (२) कोई बलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं।
(३) कोई कुलसम्पन्न भी और बलसम्पन्न भी। (४) कोई न कुलसम्पन्न और न ही बलसम्पन्न होता है। ज इसी प्रकार पुरुष भी.चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, बलसम्पन्न नहीं। ॐ (२) कोई बलसम्पन्न होता है, कुलसम्पन्न नहीं। (३) कोई कुलसम्पन्न भी और बलसम्पन्न भी, और (४) कोई न कुलसम्पन्न और न ही बलसम्पन्न होता है।
४७५. घोड़े चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई घोड़ा कुलसम्पन्न होता है, रूपसम्पन्न नहीं। (२) कोई रूपसम्पन्न तो होता है, कुलसम्पन्न नहीं, (३) कोई कुलसम्पन्न भी और रूपसम्पन्न भी, और (४) कोई न ॐ कुलसम्पन्न और न रूपसम्पन्न होता है।
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| स्थानांगसूत्र (१)
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(566)
Sthaananga Sutra (1)
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