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म ४१७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणसोभकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणसोभकरे, एगे गणसोभकरेवि माणकरेवि, एगे णो गणसोभकरे णो माणकरे।
४१७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई अपने प्रभाव से गण की शोभा बढ़ाता है, किन्तु उसका अभिमान नहीं करता; (२) कोई अभिमान तो करता है, किन्तु गण की कोई शोभा नहीं बढ़ाता; म (३) कोई गण की शोभा भी बढ़ाता है और अभिमान भी करता है; तथा (४) कोई न गण की शोभा ही बढ़ाता है और न अभिमान ही करता है।
417. Purush (men) are of four kinds——(1) some man is ganashobhakar (enhances glory of the religious organization with his influence) but is not proud of that, (2) some man is proud but is rot ganashobhakar,
(3) some man is ganashobhakar as well as proud, and (4) some man is 5 neither ganashobhakar nor proud.
४१८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणसोहिकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे ॐ णाममेगे णो गणसोहिकरे, एगे गणसोहिकरेवि माणकरेवि, एगे णो गणसोहिकरे णो माणकरे।
४१८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई गण की शुद्धि करता है (बढ़ती हुई दुष्प्रवृत्तियों पर ऊ रोक लगाता है), किन्तु अभिमान नहीं करता; (२) कोई अभिमान करता है, किन्तु गण की शुद्धि नहीं न करता; (३) कोई गण की शुद्धि भी करता है और अभिमान भी करता है; और (४) कोई न गण की
शुद्धि ही करता है और न अभिमान ही करता है। $ 418. Purush (men) are of four kinds--(1) some man is
ganashuddhikar (curbs unethical activities of the religious organization) but is not proud of that, (2) some man is proud but is not ganashuddhikar, (3) some man is ganashuddhikar as well as proud, and (4) some man is neither ganashuddhikar nor proud.
४१९. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं णाममेगे जहति णो धम्मं, धम्म णाममेगे जहति णो रूवं, एगे रूवपि जहति धम्मंपि, एगे णो रूवं जहति णो धम्म।
४१९. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष वेश का त्याग कर देता है, किन्तु धर्म का त्याग नहीं करता; (२) कोई धर्म का त्याग कर देता है, किन्तु वेश का त्याग नहीं करता; (३) कोई वेश
का भी त्याग कर देता है और धर्म का भी त्याग कर देता है; तथा (४) कोई न वेश का ही त्याग करता ॐ है और न धर्म का ही त्याग करता है।
419. Purush (men) are of four kinds—(1) some man abandons the ascetic garb but does not abandon his religion, (2) some man abandons his religion but does not abandon the ascetic garb, (3) some man abandons the ascetic garb as well as his religion, and (4) some man abandons neither the ascetic garb nor his religion.
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| स्थानांगसूत्र (१)
(524)
Sthaananga Sutra (1)
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