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विवेचन - उदक (जल) पर खिंची हुई रेखा जैसे तुरन्त मिट जाती है, उसी प्रकार जो क्रोध
5 अन्तर्मुहूर्त्त ( ४८ मिनट) के भीतर उपशान्त हो जाता है, वह संज्वलन क्रोध है। बालू में बनी रेखा जैसे आदि के द्वारा अल्प समय के भीतर मिट जाती है, इसी प्रकार जो क्रोध पाक्षिक प्रतिक्रमण के
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फ होने पर मिट जाती है, इसी प्रकार जिस क्रोध का संस्कार अधिक से अधिक एक वर्ष तक रहे और
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फ्र
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फफफफफफफफफ
animal, (3) when a living being dies in state of anger like baluka-raji (pratyakhyanavaran) it is reborn as a human being, and (4) when a living being dies in state of anger like udak-raji (sanjvalan) it is reborn in the divine realm.
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वायु
Elaboration-Sanjualan krodh is the kind of anger that gets pacified
5 soon, within antarmuhurt ( 48 minutes ), just like a line drawn on the !
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समय तक शान्त हो जाता है, वह प्रत्याख्यानावरण क्रोध है। ग्रीष्म ऋतु में पृथ्वी पर बनी हुई रेखा वर्षा
सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करते हुए शान्त हो जाए, वह अप्रत्याख्यानावरण क्रोध है । पत्थर की रेखा मिटनी मुश्किल है, उसी प्रकार जिस क्रोध का संस्कार एक वर्ष के बाद भी दीर्घकाल तक बना रहे, उसे अनन्तानुबन्धी क्रोध कहा है ।
( माया, मान, लोभ कषाय का वर्णन सूत्र २८२ - २८४ में किया जा चुका है ।)
surface of water that vanishes within moments. Pratyakhyanavaran
krodh is the kind of anger that gets pacified latest by the time of! fortnightly pratikraman (critical review), just like a line drawn on sand that is soon obliterated by wind. Apratyakhyanavaran krodh is the kind of anger that continues for a maximum period of one year and gets pacified latest while doing samvatsarik pratikraman (annual critical review), just like a line drawn on ground during summer season that ! gets obliterated when rains start. Anantanubandhi krodh is the kind of anger that continues even after a year for a long time, just like a line etched on stone that is difficult to obliterate.
Other passions including maya ( deceit ), maan ( conceit) and lobh 5 ( greed ) have already been discussed in aphorisms 282-284.
भाव- पद BHAAVA-PAD (SEGMENT OF SENTIMENTS)
३५५. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा - कद्दमोदए, खंजणोदए, वालुओदए, सेलोदए । एवामेव उव्विहे भावे पण्णत्ते, तं जहा -कद्दमोदगसमाणे, खंजणोदगसमाणे, सेलोदगसमाणे ।
वालुओदगसमाणे,
स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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