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5 पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं । तासिं णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता,
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तासिं णं पुक्खरिणीणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि दधिमुहगपव्वया पण्णत्ता, ते णं दधिमुहगपव्वया चउसर्द्वि जोयणसहस्साइं उड्डुं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा 5 पल्लगसंठाणसंठिता, दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।
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तेसिं णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो चत्तारि तोरणा पण्णत्ता, तं जहा - पुरत्थिमे णं, दाहिणे णं,
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तं जहा - पुरतो, दाहिणं, पच्चत्थिमे णं उत्तरे णं ।
उन नन्दा पुष्करिणियों में से चारों दिशाओं में तीन-तीन सोपान (तीन सीढ़ी) वाली चार सोपानपक्तियाँ हैं । उन त्रि-सोपान पंक्तियों के आगे पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में चार तोरण हैं। 5 उन नन्दा पुष्करिणियों में से प्रत्येक के चारों दिशाओं में चार वनषण्ड हैं।
पुवेणं असोगवणं, दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं ।
अवरे णं चंपगवणं, चूयवणं उत्तरे पासे ॥१ ॥ - संग्रहणी - गाथा
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तेसिं णं दधिमुहगपव्वताणं उवरि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता, सेसं जहेव अंजणगपव्वताणं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव चूतवणं उत्तरे पासे ।
उन पुष्करणियों के बिल्कुल मध्य भाग में चार दधिमुख पर्वत हैं । वे दधिमुख पर्वत ऊपर चौंसठ
5 हजार योजन ऊँचे और नीचे एक हजार योजन गहरे हैं। वे ऊपर, नीचे और मध्य में सर्वत्र समान
विस्तार वाले हैं। उनका आकार अन्न भरने के पल्यक (कोठी) के समान गोल है। वे दस हजार योजन लम्बे-चौड़े हैं। उनकी परिधि इकतीस हजार छह सौ तेईस (३१, ६२३) योजन है। वे सब रत्नमय यावत् फ रमणीय हैं।
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३४०. उन पूर्वोक्त चार अंजन पर्वतों में से जो पूर्व दिशा का अंजन पर्वत है, उसकी चारों दिशाओं
में (9) नन्दोत्तरा, (२) नन्दा, (३) आनन्दा, (४) नन्दिवर्धना नाम की चार नन्दा ( आनन्ददायिनी ) पुष्करिणयाँ हैं । वे नन्दा पुष्करिणियाँ एक लाख योजन लम्बी, पचास हजार योजन चौड़ी और एक हजार योजन गहरी हैं ।
(१) पूर्व में अशोकवन, (२) दक्षिण में सप्तपर्णवन, (३) पश्चिम में चम्पकवन, और (४) उत्तर में आम्रवन ।
उन दधिमुख पर्वतों के ऊपर अत्यन्त समतल, रमणीय भूमिभाग है। शेष वर्णन जैसे अंजन पर्वतों
5 का है उसी प्रकार यावत् आम्रवन तक सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिए।
340. In all the four directions of the Anjan Parvat located in the east among the aforesaid four Anjan Parpats there are four nanda 5 pushkarinis ( delightful lakes with lotuses ) - ( 1 ) Nandottara, (2) Nanda,
5 (3) Ananda, and (4) Nandivardhanaa. These delightful lakes are one
स्थानांगसूत्र ( १ )
Sthaananga Sutra (1)
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