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95555555555555555555555555555555555558 ॐ गं मणिपेढियाणं उवरि चत्तारि सीहासणा पण्णत्ता। तेसिं णं सीहासणाणं उवरि चत्तारि विजयदूसा
पण्णत्ता। तेसिं णं विजयदूसगाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि वइरामया अंकुसा पण्णत्ता। तेसिं गं + वइरामएसु अंकुसेसु चत्तारि कुंभिका मुत्तादामा पण्णत्ता। ते णं कुंभिका मुत्तादामा पत्तेयं-पत्तेयं 5 अण्णेहिं तदद्धउच्चत्तपमाणमित्तेहिं चाहिं अद्धकुंभिक्केहिं मुत्तादामेहिं सब्बतो समंता संपरिक्खित्ता।।
तेसिं णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णताओ। तासिं णं मणिपेढियाणं उवरि चत्तारि-चत्तारि चेइयथूभा पण्णत्ता। तेसिं णं चेइयथूभाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासिं णं मणिपेढियाणं उवरिं चत्तारि जिणपडिमाओ सब्बरयणामईओ संपलियंकणिसण्णाओ थूभाभिमुहाओ चिट्ठति, तं जहा-रिसभा, वद्धमाणा, चंदाणणा, वारिसेणा। तेसिंणं चेइयथूभाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासिं णं मणिपेढियाणं उवरि चत्तारि चेइयरुक्खा पण्णत्ता। तेसिं णं चेइयरुक्खाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासिं णं
मणिपेढियाणं उवरि चत्तारि महिंदज्झया पण्णत्ता। तेसिं णं महिंदज्झयाणं पुरओ चत्तारि गंदाओ ॐ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ। तासिं णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउदिसिं चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा-पुरथिमे णं, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे थे।
पुब्वे णं असोगवणं, दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं।
अवरे णं चंपगवणं, चूतवणं उत्तरे पासे ॥१॥-संग्रहणी-गाथा ३३९. उन अंजन पर्वतों का ऊपर भूमिभाग अति समतल और रमणीय है।
उनके अत्यन्त समतल रमणीय भूमिभगों के ठीक बीचोबीच चार सिद्धायतन हैं। प्रत्येक सिद्धायतन की लम्बाई एक सौ योजन, चौड़ाई पचास योजन और ऊँचाई बहत्तर योजन की है।
उन सिद्धायतनों के चारों दिशाओं में चार द्वार हैं। जैसे-(१) देवद्वार (पूर्व), (२) असुरद्वार (दक्षिण), (३) नागद्वार (पश्चिम), (४) सुपर्णद्वार (उत्तर)।
उन द्वारों पर चार देव रहते हैं-(१) देव, (२) असुर, (३) नाग, और (४) सुपर्ण।
प्रत्येक द्वार के समक्ष एक-एक मुख-मण्डप (प्रांगण) है। उन मुख-मण्डपों के आगे चार प्रेक्षागृहमण्डप (नाट्यशाला) हैं। उन प्रेक्षागृह मण्डपों के ठीक बीच में चार वज्रमय अक्षवाटक (रंगमंच, सभागृह)
हैं। उन वज्रमय अक्षवाटकों के मध्य में चार मणिपीठिकाएँ (रत्नों से जड़ी चौकी) हैं। उन मणिपीठिकाओं 卐 के ऊपर चार सिंहासन हैं। उन सिंहासनों के ऊपर चार विजयदूष्य (चन्दोवा) तना हुआ है। उन
विजयदूष्यों के मध्य भाग में चार वज्रमय अंकुश (अंकुश के आकार का स्तम्भ) है। उन वज्रमय अंकुशों के
ऊपर चार कुम्भिक प्रमाण मुक्तामालाएँ लटकती हैं। उन कुम्भिक मुक्तामालाओं से प्रत्येक माला पर उनकी के ऊँचाई से आधी ऊँचाई वाली चार अर्ध-कुम्भिक मुक्तामालाएँ सर्व ओर से लिपटी हुई हैं। म उन प्रेक्षागृह-मण्डपों के आगे चार मणिपीठिकाएँ हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर चार चैत्यस्तूप म हैं। उन चैत्यस्तूपों में से प्रत्येक पर चारों दिशाओं में चार-चार मणिपीठिकाएँ हैं। उन मणिपीठिकाओं
चतुर्थ स्थान
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Fourth Sthaan
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