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पंचमगणधर - श्रीसुधर्मास्वामिविरचित तृतीय अंग स्थानांगसूत्र
अध्ययन सार
ग्यारह अंग आगमों में तीसरे आगम का नाम 'स्थानांग' है। 'स्थान' का अर्थ है - परिमाण, संख्या या केन्द्र विशेष । इस आगम की प्रतिपादन शैली संख्या - प्रधान है। इसमें एक से लेकर 'दस' तक के विषयों का गणनात्मक शैली में प्रतिपादन है। इसके दस स्थान हैं। जैसे अन्य सूत्रों के एक-एक विभाग को 'अध्ययन' कहा जाता है वैसे ही इसके प्रत्येक अध्ययन को 'स्थान' कहा है। इसके प्रथम अध्ययन में 'एक' से सम्बन्धित विषयों का वर्गीकरण किया गया है।
प्रथम स्थान
जैनदर्शन में प्रत्येक विषय का कथन 'नय दृष्टि' से अर्थात् अपेक्षा सहित अनेकान्त दृष्टि से किया जाता है। निरपेक्ष वचन एकान्त होता है, सापेक्ष वचन अनेकान्तमय है। जैनदर्शन में मुख्यतः दो नय मान्य हैं - द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय । द्रव्यार्थिकनय के दो मुख्य भेद हैं- संग्रहनय और व्यवहारनय । संग्रहनय में अभेद दृष्टि मुख्य रहती है । व्यवहारनय में भेद के आधार पर कथन किया जाता है। जब किसी वस्तु की एकता या नित्यता आदि धर्मों (गुणों) का कथन किया जाता है तब उसमें रहे हुए अनेकता या अनित्यता आदि प्रतिपक्षी धर्मों की उपेक्षा कर दी जाती है । अभेद दृष्टि से प्रतिपादन करना संग्रहनय है । जब अनेकता या अनित्यता आदि धर्मों का प्रतिपादन किया जाता है तब वहाँ व्यवहारनय या पर्यायार्थिकनय की दृष्टि मुख्य रहती है।
इस प्रथम अध्ययन में सभी प्रतिपादन संग्रहनय की दृष्टि से किया गया है। जबकि आगे दूसरेतीसरे अध्ययन व अन्य अध्ययनों में 'व्यवहारनय' अथवा पर्यायार्थिकनय की मुख्यता मिलती है। दोनों ही दृष्टियाँ परस्पर सापेक्ष हैं। इनमें कोई विरोध नहीं, अपितु अपेक्षा भेद रहा हुआ है।
इस प्रथम अध्ययन में सम्पूर्ण वर्णन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से हुआ है। जैसे 'आत्मा एक है' यह पहला सूत्र द्रव्य दृष्टि से कहा गया है। क्योंकि सभी आत्माएँ अनन्त शक्ति - सम्पन्न हैं । ज्ञान- उपयोगमय है, इसलिए द्रव्य की अपेक्षा एक समान होने से एक ही है; ऐसा कहा जा सकता है। इसी प्रकार जम्बूद्वीप एक है, यह सूत्र क्षेत्र की दृष्टि से है । 'समय एक है', एक समय में एक ही कार्य होता है, इन सूत्रों का कथन काल की अपेक्षा है तथा 'शब्द एक है' यह सूत्रवचन भाव की अपेक्षा से है । भाव का अर्थ पर्याय है और शब्द पुद्गल की एक पर्याय - अवस्था है। इस प्रकार प्रस्तुत प्रथम अध्ययन में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव- इन चारों दृष्टियों से प्रतिपादन किया गया है।
प्रथम स्थान
इस सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध है तथा उसके दस अध्ययन | प्रथम अध्ययन 'स्थान' में २५६ सूत्र हैं। इन सूत्रों का वर्गीकरण पद शैली में किया गया है, जैसे अस्तित्ववाद पद। जिन सूत्रों में अस्तित्व सम्बन्धी वर्णन है उन सबको 'अस्तित्व पद' में समाविष्ट किया है। इसी प्रकार आगे भी जान लेना चाहिए।
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