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म २९७. चउबिहे संकमे पण्णत्ते, तं जहा-पगतिसंकमे, ठितिसंकमे, अणुभावसंकमे, ॐ पएससंकमे।
२९०. बन्ध (कर्मबन्ध) चार प्रकार का होता है-(१) प्रकृतिबन्ध-जीव द्वारा ग्रहण किये हुए ॐ कर्म-पुद्गलों में ज्ञानादि गुणों को रोकने का स्वभाव उत्पन्न होना, (२) स्थितिबन्ध-ग्रहण किये हुए ॐ कर्म-पुद्गलों की काल-मर्यादा का नियत होना, (३) अनुभावबन्ध-कर्म-पुद्गलों में फल देने की तीव्र-मन्द शक्ति का उत्पन्न होना, और (४) प्रदेशबन्ध-कर्म-पुद्गलों के प्रदेशों का समूह।
२९१. उपक्रम चार प्रकार का होता है-(१) बन्धनोपक्रम-कर्म-पुद्गलों का जीव प्रदेशों के साथ परस्पर सम्बन्ध होना, (२) उदीरणोपक्रम-कर्मों की उदीरणा में कारणभूत जीव का प्रयत्न, (३) उपशामनोपक्रम-कर्मों के उपशमन में कारणभूत जीव का प्रयत्न, और (४) विपरिणामनोपक्रम-कर्मों की एक अवस्था से दूसरी अवस्था रूप परिणमन कराने में कारणभूत जीव का प्रयत्न।
२९२. बन्धनोपक्रम चार प्रकार का होता है-(१) प्रकृति-बन्धनोपक्रम, (२) स्थिति-बन्धनोपक्रम, (३) अनुभाव-बन्धनोपक्रम, और (४) प्रदेश-बन्धनोपक्रम।
२९३. उदीरणोपक्रम चार प्रकार का होता है-(१) प्रकृति-उदीरणोपक्रम, (२) स्थितिउदीरणोपक्रम, (३) अनुभाव-उदीरणोपक्रम, और (४) प्रदेश-उदीरणोपक्रम।
२९४. उपशामनोपक्रम चार प्रकार का होता है-(१) प्रकृति-उपशामनोपक्रम, (२) स्थितिउपशामनोपक्रम, (३) अनुभाव-उपशामनोपक्रम, और (४) प्रदेश-उपशामनोपक्रम।
२९५. विपरिणामनोपक्रम चार प्रकार का होता है-(१) प्रकृति-विपरिणामनोपक्रम, (२) स्थितिविपरिणामनोपक्रम, (३) अनुभाव-विपरिणामनोपक्रम, और (४) प्रदेश-विपरिणामनोपक्रम।
२९६. अल्पबहुत्व चार प्रकार का है-(१) प्रकृति-अल्पबहुत्व, (२) स्थिति-अल्पबहुत्व (३) अनुभाव-अल्पबहुत्व, और (४) प्रदेश-अल्पबहुत्व।
२९७. संक्रम चार प्रकार का होता है-(१) प्रकृति-संक्रम, (२) स्थिति-संक्रम, (३) अनुभावसंक्रम, (४) प्रदेश-संक्रम।
290. Bandh (bondage of karma) is of four kinds-(1) prakriti bandh (qualitative bondage)-development of the capacity of veiling attributes like knowledge in the karma particles acquired by soul, (2) sthiti bandh (duration bondage)—fixation of the duration of bondage of the acquired karma particles, (3) anubhaava bandh (potency bondage)-development of intensity of fruition in karma particles, and (4) pradesh. bandh (spacepoint or sectional bondage)--clustering of karma particles relative to soul space-points.
291. Upakram (commencement) is of four kinds(1) bandhanopakram-commencement of the contact of karma particles
स्थानांगसूत्र (१)
(456)
Sthaananga Sutra (1)
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