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5 and not vyakt).
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(२) द्वितीय प्रकार - ज्ञान की आराधना करने में जो अतिचार लगते हैं, उनकी शुद्धि करना 5 ज्ञान- प्रायश्चित्त है । इसी प्रकार दर्शन और चारित्र की आराधना करते समय लगने वाले अतिचारों की शुद्धि करना दर्शन - प्रायश्चित्त और चारित्र - प्रायश्चित्त है। किसी अपराध - विशेष का प्रायश्चित्त यदि तत्कालीन प्रायश्चित्त ग्रन्थों में नहीं भी कहा गया हो तो गीतार्थ साधु मध्यस्थ भाव से जो कुछ भी प्रायश्चित्त देता है, वह 'वियत्तकिच्च' (विदत्तकृत्य) प्रायश्चित्त कहलाता है।
Elaboration-In the Sanskrit Tika there are two interpretations of
these—
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way
darshan (perception / faith) and chaaritra ( conduct) too are means of
purity of mind and destruction of karmas and thus they are also atonement. Vyakt-kritya-prayashchit-the acts carefully and with alertness performed by a sagacious ascetic (vyakt-kritya) are means of negating sins, thus they are atonement in themselves.
(2) Second interpretation-To atone for faults or transgressions committed during pursuit of knowledge is jnana-prayashchit. In the same way to atone for faults or transgressions committed during pursuit of right perception/faith and right conduct is darshan-prayashchit and chaaritra-prayashchit respectively. When there is no prescribed atonement mentioned in available scriptures on the subject, a sagacious ascetic
prescribes an atonement with equanimity. Such atonement is
called vidatt-kritya-prayashchit (viyatta of Prakrit transcribed as vidatt
(1) First interpretation – As jnana (knowledge) is means of purity of 5 mind and destruction of karmas it is atonement in itself. In the same
फ्र
१३३. चउव्विहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - पडिसेवणापायच्छित्ते, संजोयणापायच्छित्ते, आरोवणापायच्छित्ते, पलिउंचणापायच्छित्ते ।
१३३. प्रायश्चित्त चार प्रकार का है - ( १ ) प्रतिसेवना - प्रायश्चित्त, (२) संयोजना- प्रायश्चित्त,
(३) आरोपणा - प्रायश्चित्त, (४) परिकुंचना - प्रायश्चित्त ।
5 दोष का प्रायश्चित्त चल रहा हो, उस बीच में ही उस दोष का पुनः-पुनः सेवन करने पर यह प्रायश्चित्त
विवेचन - ( १ ) प्रतिसेवना- प्रायश्चित्त - दोष सेवन करने पर दिया जाता है । (२) संयोजना
प्रायश्चित्त - एक जातीय एक समान दोषों के सेवन पर दिया जाता है । (३) आरोपणा - प्रायश्चित्त- एक
133. Prayashchit (atonement ) is of four kinds - ( 1 ) pratisevana - फ्र prayashchit, (2) samyojana-prayashchit, (3) aaropana- prayashchit and 5 (4) parikunchana-prayashchit.
स्थानांगसूत्र (१)
(384)
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Sthaananga Sutra (1)
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