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卐))))) गगनगाभ:555
B555555555555555555555555555 卐 एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जू ४, [ उज्जू णाममेगे वंके, # के णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे बंके ]
१३. (२) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जु णाममेगे ॐ वंकपरिणते, वंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया जपण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जू णाममेगे वंकपरिणते, वंके णाममेगे ॐ उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते। , १४. (३) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जुरूवे, उज्जु णाममेगे वंकरूवे,
के णाममेगे उज्जुरूवे, वंके णाममेगे वंकरूवे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू %णाममेगे उज्जुरूवे, उज्जू णाममेगे वंकरूवे, वंके णाममेगे उज्जुरूवे, वंके णाममेगे वंकरूवे।
१२. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं। जैसे-(१) कोई वृक्ष शरीर (या द्रव्य) से ऋजु (सरल-सीधा) होता है और गुण व कार्य से भी ऋजु होता है (यथासमय फलादि देता है)। (२) कोई वृक्ष शरीर से ऋजु, किन्तु कार्य से वक्र होता है (यथासमय फलादि नहीं देता है)। [(३) कोई वृक्ष शरीर से वक्र (टेढ़ा-मेढ़ा), किन्तु कार्य से ऋजु (फल देने वाला) होता है। (४) कोई वृक्ष शरीर से भी वक्र और कार्य से भी वक्र होता है। ये चार भंग जानने चाहिए।
इसी तरह पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं, जैसे-(१) कोई पुरुष बाहर (शरीर, गति, चेष्टादि) से ऋजु और अन्तरंग या भाव से भी ऋजु होता है, (२) कोई बाहर से ऋजु, किन्तु अन्तरंग से वक्र होता है, [(३) कोई बाहर से वक्र (कुटिल शरीर वाला), किन्तु अन्तरंग से ऋजु (अष्टावक्र ऋषि की तरह),
और (४) कोई बाहर से भी वक्र और अन्तरंग से भी वक्र होता है। __इसी प्रकार जैसे उन्नत-प्रणत के सम्बन्ध में उन्नत-प्रणत, परिणत आदि जितने विकल्प कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ ऋजु और वक्र के विषय में भी जान लेना चाहिए।
१३. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई वृक्ष शरीर से ऋजु और ऋजु-परिणत (बढ़ने में भी सहज) होता है, (२) कोई वृक्ष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र-परिणत होता है, (३) कोई वृक्ष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु-परिणत, और (४) कोई वृक्ष शरीर से वक्र और वक्र-परिणत होता है। इसी तरह पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं। जैसे-(१) कोई पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु-परिणत (व्यवहार में) होता है, (२) कोई शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र-परिणत, (३) कोई शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु-परिणत, और (४) कोई शरीर से वक्र और वक्र-परिणत होता है।
१४. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई वृक्ष शरीर से ऋजु और ऋजु रूप (दीखने में आकर्षक) होता है, (२) कोई शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र रूप वाला, (३) कोई शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु रूप, और (४) कोई शरीर से वक्र और वक्र रूप होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु रूप (आकर्षक) होता है। (२) कोई शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र रूप, (३) कोई शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु रूप, और (४) कोई शरीर से वक्र और वक्र रूप होता है।
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चतुर्थ स्थान
(331)
Fourth Sthaan
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