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चित्र परिचय १३ ।
Illustration No. 13
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चार प्रकार की अन्तक्रिया (१) अल्पकर्म-अल्पवेदना-दीर्घ संयम पर्याय-जिस प्रकार भरत चक्रवर्ती ने पूर्वजन्म में किये हुए महान् तप के कारण कर्मों का भार बहुत अल्प रह जाने से आरीसा भवन में बढ़े हुए भावों की विशुद्धि के कारण संयम व केवलज्ञान प्राप्त किया और बहुत अल्प वेदना के साथ ही दीर्घकाल तक संयम पालते हुए सुखपूर्वक सिद्धगति प्राप्त की।
(२) भारी कर्म-भारी वेदना-अल्प संयम पर्याय-जिस प्रकार गजसुकुमाल मुनि ने पूर्व भवोपार्जित अत्यधिक वेदनीय कर्मों के कारण, एक ही रात की संयम पर्याय में महाभयानक वेदना भोगकर समस्त कर्मों का क्षय किया।
(३) भारी कर्म-भारी वेदना-दीर्घ दीक्षा पर्याय-जिस प्रकार सनत्कुमार चक्रवर्ती ब्राह्मण वेषधारी देवों । द्वारा प्रतिबुद्ध होकर दीर्घकाल तक घोर तप-संयम की आराधना करके महान् वेदना भोगते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए।
(४) अल्पकर्म-अल्पवेदना-अल्पकालिक पर्याय-जैसे मरुदेवी माता ने हाथी पर बैठे हुए ही भगवान ऋषभदेव के दर्शन करते-करते संयम का स्पर्श कर अत्यन्त अल्प वेदना व अल्पकालिक संयम पर्याय पालकर सिद्धगति प्राप्त की।
-स्थान ४, सूत्र १
FOUR KINDS OF ANTAKRIYA (1) Alpakarma-Alpavedana-Deergha samyam paryaya-Bharat Chakravarti had very little load of karmas due to the extreme austerities he observed during his previous birth. As a result he attained spiritual purity leading to ascetic-discipline and omniscience in his mirror palace. He lead a long ascetic life with least discomfort and attained the Siddha state peacefully.
(2) Bhaarikarma-Bhaarivedana-Alpa samyam paryaya-Ascetic Gajasukumal acquired extreme Vedaniya karmas during his previous birth. As a result he shed all his karmas within one night of getting initiated but after enduring extreme agony.
(3) Bhaarikarma-Bhaarivedana-Deergha samyam paryayaSanatkumar Chakravarti attained nirvana after getting enlightened by gods in the garb of Brahmins and observing rigorous austerities for a long time.
(4) Alpakarma-Alpavedana-Alpakalik paryaya-Mother Marudevi attained the Siddha state within a very short period of spiritual discipline and enduring very little pain while sitting on an elephant she beheld Bhagavan Risabhadeva.
--Sthaan 4, Sutra 1
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